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Saturday 5 November 2016

आगरा नैचुरल पार्क और किला, आगरा


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ताज से निकलते ही मैंने अरुण को बोला की कुछ खा लेते है, दोपहर के 12 बज गए थे तब तक। फिर हमने कुछ चिप्स और कोल्ड ड्रिंक ले ली। और खाते हुए ताज पार्क, जो ताज से थोड़ी दूरी पर ही है की ओर चल दिये। यह सामान्य  पार्क की तरह ही है इसके रास्ते थोड़े उचे-नीचे  बनाये गए है जैसे कि जंगलो के रास्ते होते है। इसमें जाने का भी टिकेट लगता है। जब हम यहाँ पहुँचे तो दोपहर हो चूँकि थी।  और धूप निकल रही थी। जिससे काफी गर्मी हो गयी। पार्क के अंदर जाते ही हमे धूप और गर्मी दोनों से छुटकारा मिला। यहाँ काफी तताद में पेड़ और पौधे है। सामान्यता ऐसे पार्को पर आज-कल अस्थाई रूप से प्रेमी जोड़ो का कब्ज़ा रहता है। पार्को की वर्तमान में ये ही छवी है। जो हमे भी देखने को मिली। पर हमे कोई फर्क नहीं पड़ा, हमारी मस्ती की नाव तो अलग ही चाल में चल रही थी। हमने पहले थोड़ी देर वही आराम किया। पर यहाँ भी कुछ खा नहीं सकते थे। क्योकि यहाँ भी खाने के सामान पर रोक थी। लेकिन थोड़ा अंदर एक कैंटीन भी बना रखी थी। अब इसे सफाई अभियान से जोड़ो या व्यसाय के रूप में देखो, यह कहना थोड़ा मुश्किल है। आराम को अब विराम लगाकर हम पार्क में अंदर चल दिए। एक उचे मिट्टी के टीले से हमे ताज के  फिर दीदार हुए। 


इस मिट्टी के  टीले से ताज की हलकी से एक झलक 

अरुण 

मैं और अरुण, यहाँ नंगे पाँव चलने में मजा आ रहा था। 
हां, आपने सही पहचान ये नकली है।  



पार्क में ही हमे 3बज गए। बाहर निकलकर हम पैदल ही कार पार्किंग की तरफ चल दिये। 10 मिनट में ही हम अपनी कार के पास पहुँच गये। समय भी बहुत हो गया था और भूख भी जोरो से लग रही थी। पार्किंग के पास ही काफी दुकाने थी, पर वहां पर खाना काफी महंगा होने की वजह से हमने वहां नहीं खाया। यहाँ से चटपटी रसोई ज्यादा दूर नहीं थी, इसलिए हमने वही जाने का मन बनाया। कार में बैठकर हम वहाँ से निकल गये। और कुछ ही मिनटों में हम चटपटी रसोई पहुँच गए। प्याज-दो-पनीर (सब्जी) और नान आर्डर की। पेट भरकर खाने के बाद एक-एक गिलास लस्सी भी पी। सच में अब जाकर राहत मिली। मैंने अरुण से पूछा की अब क्या करना है, कही ओर घूमने चले या होटल सीधा चले? वो बोला अभी तो 4 बजे है, होटल जाके क्या करंगे। कही और चलते है। मैं भी उसकी बात से सहमत था। मैंने कहा ठीक है, तो आगरा का किला देखने चलते है। वो पास भी है और हमारे पास 6:30 बजे तक का ही वक़्त है। आगरा में सभी स्थल सुर्येउदय पर खुलते है और सुर्येस्थ पर बंद हो जाते है। तो आगरा का किला देखना ही उचित लगा। हम खाना खा कर किले की तरफ चल दिए। वहाँ जा कर भोला ने कार पार्किंग में लगाई, यहाँ पार्किंग किले के सामने ही थी। हम पहले टिकट घर की तरफ गए। आगरा में हर जगह प्रवेश शुल्क लगता है। टिकट लेकर किले के अंदर चले गए।

किले में प्रवेश करते ही वहाँ की ऊँची-ऊँची दीवारों ने हमारा जोरदार स्वागत किया। ये दीवारे सच में बहुत बड़ी और मजबूत है। तभी तो ये इतने दशको बाद भी जिन्दा है। देखने में ऐसे लग रही थी मानो ज्यादा दिन नहीं हुए, अभी हाल ही में इन्हें बनाया गया है। आगरा के किले को लाल किला भी कहा जाता है। बाबर, हिमांयु और अकबर जैसे बहुत से कई राजा यहाँ पर रहे थे और यही से ही पुरे भारत पर शासन  किया था।

किले में अंदर की तरफ बढ़ते हुए 
किले के प्रवेश द्वार से अंदर जाते समय चढाई आती है जैसा की ऊपर दिए चित्र में दिख रहा है। इसे शायद इसलिए ऐसा बनाया गया है। कि कोई दुश्मन अचानक किले पर हमला कर दे तो ऊपर की तरफ से पत्थरो को दुश्मनो के लिए छोड़ा जा सके और उनको किले में प्रवेश करने से रोक जा सके। ये तो एक कारण है ही क्या पता ओर भी कोई कारण हो इसको ऐसा बनवाने की पीछे।












घूमते हुए हम पहुँच गए खास महल।  यह संमरमर के पत्थर से बना हुआ है। इसके सामने छोटे-छोटे 4 बगीचे बने हुए है और बीच में एक बड़ा सा चबूतरा है। हम काफी देर से चल ही रहे थे तो कुछ देर के लिए इस चबूतरे पर बैठ गए। यहाँ पर ओर जगह की तुलना में काफी शांति थी। और यहाँ बैठकर काफी सुकून मिला।



खास महल 
खास महल देखते हुए हम आगे बढ़ते गये। तब तक शाम हो चुकी थी। यहाँ पर हवा भी बहुत बढ़िया लग रही थी, जिसकी वजह से हमे गर्मी से थोड़ी राहत मिली। यहाँ पर मैंने अपने कुछ फोटो भी लिए थे।





आगरा किले से दिखाई देता ताजमहल 









इस हिस्से पर ताला लगा था। इसलिए बाहर से ही फोटो ले लिया 



ये फोटो कुछ अलग अंदाज़ में और पीछे कमरे में लगा ताला 







घूमते हुए हम मूसम्मन बुर्ज की तरफ गए। यह  बहुत ही सुन्दर बना हुआ है। ये वो जगह है जहाँ पर शाहजहाँ ने अपने जीवन के अंतिम वर्ष बिताये थे। उनके पुत्र औरंगजेब ने उन्हें यहाँ नज़रबंद कर रखा था। इसलिए अपने जीवन के अंतिम वर्ष उन्होंने यही से ताजमहल को निहारते हुए बिताये थे। वाकई में शाहजहाँ  के लिए ये बहुत ही दुख़त पल रहे होंगे।


मूसम्मन बुर्ज





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