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Thursday 24 November 2016

मेरी पहली बाइक यात्रा

दिनाँक  8 अक्टूबर 2016 ...


मैंने इस यात्रा की शुरुवात छुट्टियों को मद्देनज़र रखते हुए की। ऑफिस में बैठे हुए देखा कि 9 तारीख का रविवार है और 11 का दशहरा। लेकिन 10 तारीख को कोई छुट्टी नहीं थी, पर एक दिन की  छुट्टी तो ली भी जा सकती है। इन सब बातो को ध्यान में रखते हुए मैंने योजना बनायी की बाइक से देहरादून, मसूरी , धनोल्टी, चम्बा, टिहरी और  ऋषिकेश की यात्रा की जाये। ऑफिस के ही एक दोस्त जिसका नाम आशीष है, उससे पूछा कि बाइक से कही घूमने चलोगे क्या? उसको बताया 9 और 11 छुट्टी है बाकि 10 की हम ले लेंगे। इससे ज्यादा छुट्टियों का सदुपयोग और भला क्या हो सकता है कि एक दिन की  छुट्टी लेने पर अपने पास टोटल 3 दिन है। आशीष ने चलने के लिए तो हां कर दी। पर वो अब मुझसे आगे कुछ बोल पाता इससे पहले ही उसकी सवालो से भरी निगाहों को पढते हुए मैंने ही अपनी बनायीं हुई योजना के बारे में उसको बताना शुरू किया। मैंने बताया कि हम देहरादून होते हुए मसूरी जायेंगे और वही रात रुकेंगे फिर अगली सुबह मसूरी से धनोल्टी के लिए निकलेंगे, यहाँ कुछ समय रुकने के बाद टिहरी झील देखेगे और उससे अगले दिन ऋषिकेश होते हुए वापिस घर। वाकई में इस यात्रा पर बहुत मजा आने वाला था, क्योकि हम जिस रस्ते से जायेंगे उस रस्ते से वापस नहीं आयेंगे। यानी जाने का रास्ता अलग और आने का रास्ता भी अलग। जाहिर है, ऐसे घूमने में सभी को मजा आता होगा। जिसमे किसी भी रस्ते को दोबारा दोहराना ना पड़े। मुझे तो ऐसे बहुत मजा आता है।

मैं आज तक बाइक से कभी इतनी दूर घूमने नहीं गया। जिसकी वजह से थोड़ा डरा हुआ था। और अकेला नहीं जाना चाहता था। मेरे हिसाब से, कम से कम 4 लोग तो इस समूह में जरूर होने चाहिए थे। यदि ऐसा होता है तो बहुत अच्छा होगा। अब आशीष और मैं तो राजी हो गए पर अभी भी 2 लोगो को ओर साथ लेना था। जो बाकि 2 ओर हमारे साथ चलेंगे उनमे से एक के पास मोटरसाइकल जरूर होनी चाहिए। क्योकि मेरे पास मोटरसाइकल थी, पर आशीष के पास नहीं थी। और एक बाइक पर तो 4 लोग नहीं जा सकते। इस बात को ध्यान में रखते हुए। मैंने अपने ही ऑफिस में काम करने वाले एक ओर लड़के से चलने को बोला। इसका नाम राजू है। और सबसे अच्छी बात यह है कि राजू पर मोटरसाइकिल भी है। यदि राजू चलने को हां कर देता है तो हमारी दूसरी मोटरसाइकिल वाली परेशानी भी ख़त्म तो जाएगी। जब मैंने राजू को बताया कि हम कैसे-कैसे और कहाँ-कहाँ जायेंगे तो राजू भी चलने को तैयार हो गया। और चौथा मेरे घर के पास से ही जावेद ने हां कर दी।
अब  चलने की तैयारी शुरू। "अब सब परेशानी खत्म" जैसा हम सोचे बैठे थे, पर ऐसा नहीं था, परेशानी तो अब आगे होनी थी। मेरी मोटरसाइकिल का प्रदूषण और इन्सोरेंस दोनों ही नहीं थे। और जाने के 2 दिन ही थे और दोनों दिन मुझे ऑफिस आना था। शाम को जब ऑफिस की छुट्टी होगी, तब तक इन्सोरेंस के दफ्तर भी बंद हो जाने थे। फिर भी सोचा कि जाने से पहले किसी ना किसी को भेज कर इन्सोरेंस करा ही लूंगा। पर जैसा हम सोचते है, ज्यादातर उसका उल्टा ही होता है। कैसे, वो भी बताऊँगा।

हमारी योजना के मुताबिक हमे 8 तारीख को शाम 5 बजे निकलना था। पर जाने से एक दिन पहले ही राजू ने बातो-बातो में आशीष को बोला की मैं नहीं चल पाउँगा, मुझे कुछ जरूरी काम आन पड़ा है। आशीष ने ये बात मुझे बताई, सुनकर बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा। पर कर भी कुछ नहीं सकते। अब हमारा जाना लगभग रद्द हो गया। क्योकि हम पर 2 ही मोटरसाइकिल थी, एक मेरे पास और दूसरी राजू के पास। राजू ने मना कर दिया तो अब एक ही मोटरसाइकिल बची मेरे पास। और एक मोटरसाइकिल पर 3 तो  नहीं जा सकते थे। हलाकि हम तीनो बस से भी निकल सकते थे।  और यह सुझाव आशीष ने भी दिया। लेकिन मेरी इच्छा बाइक से जाने की थी।  इसलिए मैं बस से चलने को तैयार नहीं था। अब सबकी तरफ से चलना रद्द था पर मेरी तरफ से नहीं। मुझे विश्वास था कि मैं कोई ना कोई इंतज़ाम कर ही लूंगा। मैंने अपने 3-4 दोस्तों से इस यात्रा पर चलने को बोला, पर किसी के रिस्ते की बात चल रही थी। तो किसी को जरुरी काम था। तो फलस्वरूप सबकी तरफ से ना ही सुनने को मिली। आज तारीख हो गयी 8 और आज शाम को हमको निकलना था। पर अभी तक दूसरी मोटरसाइकिल का इंतज़ाम नहीं हो पाया। सुबह ऑफिस जा कर मैंने राजू से बात की और उस पर चलने का दवाब बनाया। फिर क्या, राजू चलने को तैयार हो गया। मैंने राहत की साँस ली। हमे 5 बजे घर से निकलना था, पर हमे ऑफिस में ही 5 बज गए। फिर भी हमे अब तसल्ली थी कि जाना पक्का हो गया। अक्सर ऐसा होता है कि जब तुम ऑफिस से जल्दी निकलना चाहो तो कुछ ना कुछ जरुरी काम आ ही जाता है और फिर तुम नहीं निकल पाते। हमारे साथ भी कुछ ऐसा ही होने वाला था। इस जरुरी काम वाले दलदल में सबसे ज्यादा फसने का डर मुझे राजू का था। और उसकी तरफ से एक बार पहले भी ना हो चुकी थी। इसी वजह से मैंने राजू को कहाँ कि "तुम छुट्टी लेके जल्दी निकल जाओ और अपने कपडे लेके मेरे घर पर मिलना। हम तुमको वही मिलेंगे। समय 5:15 का हो रहा था। और हमारी छुट्टी 5:30  बजे होनी थी। अब राजू ऑफिस से निकल ही रहा था कि इतने में वो उसी दलदल में फस गया, जिसका मुझे डर था। आखिर "जरुरी काम" नाम का इंजेक्शन राजू को लगा दिया गया।  फ़िलहाल यह शब्द हमारे लिए बहुत ही खतरनाक सपने जैसा था। जिसका असर हमारी यात्रा पर जरूर पड़ता। खैर अपना सा मुँह लिए हुए हम फिर उदास हो गए। हम इंतज़ार के अलावा कुछ नहीं कर सकते थे। फिर भी सकारात्मक सोच के साथ मैंने राजू को बोला कि ऑफिस का काम ख़त्म करके जरूर आ जाना। हम तुझे तैयार मिलेंगे। फिर 5:30  बजे मैं और आशीष ऑफिस से निकलकर पहले आशीष के घर गए। आशीष इंदिरापुरम में रहता है। उसके घर से बैग उठाया और वहाँ से हम मेरे घर चले गए। घर पहुँचकर मैंने जावेद को भी सारी बात बता दी। और बोला की राजू को आने में 10 बज जायेंगे और जैसे ही वो आएगा हम चल देंगे। उसे  भी सुनकर अच्छा नहीं लगा, पर इंतज़ार के अलावा हमारे पास और कोई चारा नहीं था। देखते-देखते 10:30 बज गये। राजू को फ़ोन  किया तो, बैटरी डाउन की वजह से उसका फ़ोन बंद आया। अब दिमाग पूरी तरह ख़राब हो गया। अब करे तो क्या करे, कुछ नहीं पता था। जाना तो था, पर बाइक 1 होने की वजह से इतना सब कुछ झेलना पड़ रहा था। नहीं तो कब का निकल गए होते। कुछ समय तक कुछ समझ नहीं आया। कमरे में कुछ समय के लिए ख़ामोशी छा गयी। आशीष और मैं बिल्कुल शांत थे, पर हमारी आँखे एक-दूसरे से सवाल कर रही थी कि भायो अब क्या होगा ? समय देखा तो 11, हमे राजू का घर भी नहीं पता था, जो वहां चले जाते और फ़ोन अभी भी बंद था। तब ऑफिस के ही एक लड़के से उसके घर का पता लिया। रात के 11:30 का समय था। वो एक गाँव में रहता है उस जगह हम पहले कभी नहीं आये थे।  मेरे और आशीष दोनों के लिए ही ये जगह अनजान थी। और ऊपर से रात का समय, पूछे भी तो किससे पूछे? गाँव में तो सब 7-8 बजे तक सो जाते है।  दूर-दूर तक कोई आदमी नहीं दिख रहा था और गाँव के घरो पर नम्बर प्लेट भी नहीं होती, जो बन्दा उन्हें पढ़ते हुए सही पते पर पहुँच जाए। सब हमारी तरह पागल कोई है जो  रात के 12 बजे सड़को पर धूल चाट रहे थे।  वो भी एक अनजान पते के लिए। लेकिन ऊपर वाला हमारे साथ था।  मैंने अंदाज़े से, डरते-डरते एक घर का दरवाज़ा खटखटाया।  अंदर से एक औरत निकलकर आयी।  मैंने उनसे राजू के बारे में पूछा।  उन्होंने कहाँ हां, ये ही राजू का घर है। गलती से ही सही पर हम सही जगह पहुँच गए। राजू अभी थोड़ी देर पहले ही अपने घर आया था और उसने अपना फ़ोन चार्ज के लिए लगाया हुआ था। हमे देखते ही राजू एक दम हक्का-बक्का रह गया।  उसको विश्वास नहीं था कि हम उसके घर भी पहुँच सकते थे। 
राजू बोला  "आपको तो मेरे घर का पता भी नहीं पता था। और इतनी रात को कैसे पहुँचे?"
"वो सब छोड़, तू आया क्यों नहीं"
"मैं बहुत थक गया और अब चलने की हिम्मत नहीं हो रही, हम सुबह चले क्या?"
अब मेरा गुस्सा सातवे आसमान पर था। मैंने उसको बहुत खरी-खरी सुनाई। हम सब तो पिछले 4-5 घटे से उसके आने का इंतज़ार कर रहे थे। और वो नवाब अपने आप ही सुबह चलने की योजना बनाये बैठे थे। सुनने का पूरा इंतज़ाम तो उसने खुद ही कर रखा था। मेरे गुस्से को उसने भाप लिया और तुरंत ही बैग उठा के हमारे साथ साथ चल दिया। समय 12 का था, थोड़ी देर में मेरा गुस्सा शांत हो गया। मैं मन ही मन सोच रहा था कि सही कहते है कि यदि किसी काम के पीछे हाथ धो के पड़ जाओ तो वो काम जरूर पूरा होता है। इसका उदाहरण आज सामने था। कल से पता नहीं क्या-क्या झेला और कई बार जाना रद्द भी हुआ पर मैंने हार नहीं मानी थी। और हमे इसका फायदा भी मिला।



जावेद (बायीं तरफ ) आशीष (दायीं ओर) के साथ , इनके चेहरे की मुस्कान बता रही कि हमने जाने के लिए कितने पापड़ बेले 


इस यात्रा का अगला भाग पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करे .....

2 comments:

  1. janaa hai ya nahi jana... last tak suspense bna raha kahani me.

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  2. Bike pr tour krna bahut hi majedar hoga gaurav ji . Kabhi dobara moka lage to hume bhi jarur le chalna apne sath

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