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यहाँ से होते हुए हम नगीना मस्जिद जा पहुँचे। यह सन 1635 में केवल वहॉ की स्त्रियो के लिये बनायीं गयी थी। इसके तीन तरफ आंगन है। इसके चारो तरफ की दीवारे यहाँ पर पर्दो का काम करती है। इसके अंदर जानना बाजार था, जिसमे केवल महिलाये दुकाने लगाया करती थी। यह मस्जिद शाहजहाँ की निजी मस्जिदों में सबसे सुन्दर है। सूरज ढल चूका था और हल्का-हल्का अंधेरा होने लगा था। अब वापस चलने की बारी थी। यहाँ से बाहर निकालकर हम चटपटी रसोई गये और खाना खाया। और फिर सीधा होटल। थोड़ी देर बैठकर हम दोनों ने पुरे दिन जो देखा उस पर अपना-अपना नजरिया व्यक्त किया। ताजमहल, ताज नैचुरल पार्क और किले की तारीफ करते-करते समय 9 का हो चला। अब हमे नींद आने लगी थी। पूरा दिन घूमते हुए थक भी गए थे। अरुण ने रस्ते में कई बार मुझसे ये कहाँ कि इतना तो मैं पिछले 1 साल में नहीं चला, जितना आज चला हूँ। मैंने उसको बोला नहीं पर मेरी हालत भी कुछ ऐसी ही थी! दरअसल हम दोनों की ही बाबू वाली नौकरी है। जिसमे घर से बाइक पर ऑफिस, ऑफिस में बैठे रहना और छुट्टी होने पर फिर बाइक से घर। हमारी रोजमरा के जीवन में कोई भी शारारिक गधिविधि ऐसी नहीं है जिससे फिट रह सके। तो इस हिसाब से आज जितना पैदल चले वो सच में हमारे लिए तो बड़ी बात है। मैंने ए.सी. चलाया और लेट गये। बात करते हुए कब नींद आ गयी पता भी नहीं चला।
आँख सुबह 6 बजे खुली। आज यात्रा का हमारा आखिरी दिन था। हम आज थोड़ा आराम से ही तैयार हुए क्योकि हमे अनुमान हो गया था कि होटल में नाश्ता देर से ही शुरू होगा। और हमारी बात सच साबित हुई। नाश्ता सच में 8 बजे ही शुरू हुआ। नाश्ते में वो ही सब था, जो पहले दिन था। नाश्ता करके हमने अपना सामान कार में रखवा लिया। वैसे तो होटल का कमरा 11 बजे तक था पर हमे आज महताब बाग़ और फतेहपुर सिकरी देखते हुए वही से सीधा घर निकलना था। यहाँ फिर हमारा आना नहीं होगा, इसलिए सुबह चलते वक़्त ही सारा सामान साथ ले लिया और होटल के कमरे की चॉबी मेनेजर को सोप दी। कल के मुकाबले आज गर्मी ज्यादा थी और रास्तो पर जाम भी। स्वतंत्रा दिवस होने की वजह से रास्तो पर जगह-जगह डीजे पर देश भक्ति गाने चला रखे थे। और सभी लोग उन गानो पर नाचकर अपनी ख़ुशी जाहिर कर रहे थे। इन्हें देखकर मेरा भी मन हुआ की मैं भी कार से ऊतरु और इस ख़ुशी में शामिल हो जाऊ। पर हमे जाम की वजह से पहले ही देर हो गयी थी। इसलिए अपने देश के तिरंगे को सलाम करते हुए आगे निकल गए।
कुछ ही देर में हम महताब बाग़ जा पहुँचे। गेट पर से अरुण ने टिकट लिए और हम अंदर चले गए। अभी थोड़ा अंदर चले ही थे कि अरे! मैं ये क्या देखता हूँ, ताजमहल फिर से ठीक मेरे सामने। ऐसा लग रहा था जैसे मैं ताजमहल के सामने ही घूम रहा हूँ। दरअसल महताब बाग़ कुछ किलोमीटर गोल घूमकर ताजमहल के बराबर में आकर ही मिलता है। जिससे देखने में ऐसा बिलकुल नहीं लगता की हम कही ओर खड़े है बल्कि लगता है जैसे ताजमहल के सामने बने बगीचे में ही घूम रहे हो। यहाँ पर वो बात साबित हो गयी जो मैंने आपको पहले बताया था कि हमने ताज को अलविदा कह दिया पर ताज ने हमको नहीं। हम कल से जहाँ भी जा रहे थे वही से ही ताज के दीदार होते रहे। और हां ये बाग़ भी सुन्दर-सुन्दर पेड-पौधों और प्रेमी जोड़ो से सजा हुआ था। कुछ स्कूल के बच्चे भी यहाँ अपने अध्यापको के साथ स्वतंत्रा दिवस के मोके पर घूमने आये हुए थे। उनके अध्यापको ने बच्चो की प्रेमी जोड़ो से एक उपयुक्त दुरी बना रखी थी ताकि उनकी मानसिकता पर कोई गलत प्रभाव ना पडे। और बच्चो के लिए ये ही अच्छा था। हम थोड़ी देर एक पेड़ के निचे बैठे रहे और वहाँ कुछ फोटो भी ली।
यहाँ से लग ही नहीं रहा कि हम ताजमहल में नहीं है! |
कुछ फोटो अपनी भी |
प्रकृति से मुझे बहुत प्यार है! |
महताब बाग़ से ताजमहल का नज़ारा कुछ ऐसा है |
समय लगभग 11 का गया था। अब यहाँ से निकलकर हम सीधा फतेहपुर सिकरी के लिए चल दिये। रस्ते में फिर से थोड़ा जाम मिला पर जल्द ही हम इस जाम से निकल गए। तक़रीबन 1 बजे हम वहाँ पहुँच गए। यहाँ हमने कार पार्किंग में लगाई। गर्मी और जाम ने हमे बहुत थका दिया था। फिर भी मन मारते हुए हम बुलंद दरवाज़ा, जोधाबाई की रसोई देखने चल दिए। आगे के लिए ऑटो चलते है और बस। मैंने एक पुलिस वाले बहुत ही सहजता से पूछा तो उसने बताया यदि आप ऑटो से जाओगे तो वो 300 मीटर पहले ही आपको उतार देगा और आगे का सफर पैदल ही करना पड़ेगा। आगे थोड़ी चढ़ाई भी है तो हो सकता है पैदल चलने में परेशानी हो। और यदि बस से जाओगे तो बस ऊपर ही उतारेगी जिससे पैदल नहीं चलना पड़ेगा। अब सोचने के लिए कुछ बचा ही नहीं था। हम वहां पहुँचे जहाँ से बस चलती थी। हमने बस में फटाफट 2 सीट पकड़ ली। यहाँ से ऊपर तक का रास्ता मात्र 1 किलोमीटर का ही है इसलिए 5 मिनट में ही हम पहुँच गए। पहले हमने लाइन में लगकर टिकट लिया। यहाँ पर गाइड भी थे 400 रुपए में 2 घंटे के हिसाब से। हमने जब ताजमहल में गाइड नहीं किया तो यहाँ करने का तो सवाल ही नहीं था। बिना गाइड के हम अंदर चले गये। सबसे पहले पहुँचे जोधाबाई के रसोई देखने। इस रसोई के बाहर प्याऊ भी लगा हुआ था।
दीवान-ए- खास का केंद्रीय स्तंभ |
दीवान-ए-खास की सुंदरता भी किसी से कम नहीं है दोस्तों।
सामने ऊपर की ओर दिखाई देता पंच महल |
समय दोपहर के 1 बजे का था। गर्मी ने बहुत ज्यादा परेशान कर दिया। ये सब देखकर अब बुलंद दरवाजा ओर देखना बाकि था। अरुण बोला, चलो बुलंद दरवाज़ा ओर देख ले फिर घर के लिए निकलेंगे। मैं गर्मी के वजह से थक गया था। इसलिए मैंने बुलंद दरवाजा देखने से मना कर दिया। अरुण अकेले ही देखने चला गया। इसका आज भी पछतावा होता है कि बुलंद दरवाजे के इतने पास होकर भी मैंने उसको देखने से मना कर दिया। अब पता नहीं वहाँ कब जाना होगा। खैर अब जो हुआ सो हुआ पर आगे से कभी ऐसा ना करने का मन बना लिया।
मैंने वहाँ से बस पकड़ी और 5 मिनट में पार्किंग के पास पहुँच गया। मैंने रस्ते से एक कोल्ड ड्रिंक की बोटल ली और चिप्स लिए और खाते हुए कार जहाँ खड़ी की थी उधऱ चल दिया। थोड़ी ही देर में अरुण भी वहाँ आ गया। अब हमे ओर कही नहीं जाना था। इसलिए घर की तरफ रुख कर लिया । रास्ते में हमे घर के लिए पेठे की मिठाई लेने का ख्याल आया। आगरा का पेठा बहुत ही लोकप्रिय है और वो भी पंछी वाले का। पर यहाँ तो हर दुकान पंछी के नाम से है। अब असली पंछी वाला कौन है? ये पता लगाना तो मुश्किल था। इसलिए इस बात पर ध्यान ना देते हुए एक दुकान के पास कार रोकी। हलाकि ये दुकान भी पंछी वाले के नाम से ही थी। हमने वहाँ से केसरी पेठा, अंगूरी पेठा और साधा पेठा का एक-एक डिब्बा ले लिया। और वहाँ से निकलकर कुछ देर में ही हम युमना एक्सप्रेसवे पर पहुँच गए। अब यहाँ से घर पहुँचने में ज्यादा वक़्त नहीं लगना था। ढाई घंटे में हम घर पहुँच गये। इस यात्रा के दौरान हमने 547 किलोमीटर का सफर तय किया। और अरुण के साथ कुछ अच्छे पलो को समेटे हुए, यह सफर यही ख़त्म हुआ।
Very nice
ReplyDeleteशुक्रिया विनीत भाई
Deleteyaha apne ek chiz miss kr di. Darasal vo apne nahi humne miss kr di. yadi aap vha bhi jaate to hum bhi Buland Darwaze ki ser kar lete.
ReplyDeleteFir bhi Agra ki yatra padhke acha lga.
ReplyDeleteApki yh yatra bahut hi achi lagi..aisa lga maine hi is yatra ko jiya hai ..
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