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Thursday 23 March 2017

अबकी बार शिमला यार -Abki Baar Shimla Yaar



दिनांक- 08 मार्च 2017 ,  दिन- बुधवार 


अपनी शिमला यात्रा के बारे में आपको पहले ही अवगत करा चुका हूँ। शिमला का बहुत नाम सुना था और यह पर्यटकों के बीच बहुत ही लोकप्रिय है। इसलिए इसकी पहचान ने हमे भी अपनी ओर आकर्षित कर ही लिया। इच्छा थी कि शिमला बस से ना जाकर रेल से जाया जाये। गाज़ियाबाद से कालका हावड़ा-दिल्ली-कालका मेल और फिर कालका से शिमला के बीच चलने वाली टॉय ट्रेन में सफ़र करने पर विचार हुआ। यानी घर से शिमला तक का पूरा सफ़र सिर्फ रेल से। और वैसे भी कालका-शिमला के बीच चलने वाली रेल के बारे में मैंने भी बहुत सुना था।
तो ये मौका कैसे छोड़ पाता ? मेरी पहली पसंद  रेल ही थी। चूँकि मैं यह यात्रा परिवार के साथ करने जा रहा था तो उनकी राय भी जरूरी थी। पत्नी से पूछा कि
बस से चलना है या रेल....। इससे पहले की मेरा सवाल पूरा होता उससे पहले ही मुझे जवाब मिल चुका था " जब वहाँ तक रेल जाती है तो रेल से ही चलेंगे, बस से क्यों ?" जब रेल से चलना तय हो गया तो अब अगला काम रेल में सीट आरक्षित (रिजर्वेशन) करना। ऑनलाइन देखा तो बहुत ही कम सीटे शेष थी। जल्दी से सीटे बुक कर ली। 8 मार्च को जाने की और 15 मार्च को वापस आने की। वैसे तो ये 7 दिन बहुत ही ज्यादा है केवल शिमला  के लिए। लेकिन मैं इस बार की होली (13 मार्च) शिमला में ही बनाना चाहता था। इसलिए वापसी की तारीख 15 रखी गयी। बाद में जब घर वालो को पता चला की इस बार होली घर में नहीं बनेंगी तो उन्होंने अपनी नाराज़गी व्यक्त की। खासकर माता जी और पिता जी ने। इसलिए वहाँ से आने की तारीख 15 से बदलकर 12 मार्च कर ली गयी। यानी अब शिमला यात्रा 8 मार्च से 12 मार्च तक की हो गयी। 4 दिन भी यहाँ के लिए काफी है। इससे अब घरवाले भी खुश और घरवाली भी खुश।



ऑफिस में छुट्टी के लिए बॉस को पहले ही बोल दिया था। सारी तैयारियां लगभग समय से पहले ही पूरी कर ली गयी। अब हमारी यात्रा कुछ इस तरह से रहेगी। 8 मार्च को शाम 08:02 बजे ग़ाज़ियाबाद स्टेशन से हावड़ा-दिल्ली-कालका मेल जो हावड़ा,कलकत्ता से कालका का सफर 3 दिनों में तय करती है। और हावड़ा से चलकर यह दूसरे दिन रात को 08:02 बजे ग़ाज़ियाबाद स्टेशन पर पहुँचती है और तीसरे दिन सुबह 04:30 बजे कालका। यानी 8 की रात को बैठकर हम अगले दिन 9 मार्च को सुबह 04:30 बजे कालका पहुचेगे और वहाँ से शिवालिक एक्सप्रेस से जिसका कालका से चलने का समय 05:20 का है से शिमला 10 बजे पहुँच जायेंगे। 



सब कुछ योजना के अनुसार तय था। पर डर था हावड़ा-दिल्ली-कालका मेल का देरी से चलना। यह रेल अधिकतर अपने निर्धारित समय से देर ही रहती है। इसके यह चर्चे मैं बहुत सुन चुका था इसलिए तसल्ली के लिए मैंने अपने मोबाइल पर एक एप्लिकेशन डाउनलोड कर ली। जिससे मुझे पल-पल की खबर रहे कि यह रेल रोज कितनी देरी से चल रही है। हालांकि यह कितना भी लेट रहे कालका-शिमला वाली टॉय ट्रेन इसका इंतज़ार जरूर करती है। और इसके कालका स्टेशन पहुँचने के बाद ही उनको शिमला के लिए रवाना किया जाता है। फिर भी इसके लेट होने का मतलब है की हमारा 1 दिन बर्बाद होना। वो एक दिन जो हमे शिमला में बिताने को मिलेगा वो एक दिन रेल के एक डिब्बे में बिताना पड़ेगा। इसलिए इसकी चिंता होना लाज़मी था। इस एप्लिकेशन के जरिये यात्रा से पहले रोज इस रेल का ग़ाज़ियाबाद पहुँचने का समय देखता रहा। यह कभी 2 घंटे, कभी 3 और कभी-कभी तो 5 घंटे देरी से चल रही थी। इसका यह हाल देखकर चिंता और बढ़ गयी। ज्यादा चिंता करने से कुछ हासिल नहीं होगा यही सोचकर समय पर ही सब कुछ छोड़ दिया। जो होगा देखा जायेगा। 



8 मार्च को भी ऑफिस जाना था इसलिए 7 की शाम को ही सारी पैकिंग कर ली। अगली सुबह ऑफिस गया पर काम में अब मन कहाँ लगने वाला था। मन तो चलने के लिए उत्सुक था। इसलिए बार-बार नज़रे घड़ी की ओर जाती। ऑफिस के जरूरी काम निपटा के अपनी यात्रा का एक काम और पूरा कर लिया। मैंने सभी दिनों के लिए ऑनलाइन होटल बुक नहीं किया। पता नहीं घूमते-घूमते कहाँ जाने का मन कर जाए और होटल वही लेना पड़ जाये जहाँ घूम रहे हो। यदि सभी दिनों के लिए होटल पहले ही बुक करता तो फिर हमे मज़बूरन रोज शाम को वही लौटना पड़ता। इससे घूमने का मजा भी किरकिरा होता। इसलिए जिस दिन वहाँ (9 मार्च ) पहुचेगे बस उसी रात के लिए होटल बुक कर लिया। वैसे तो वहाँ पहुँचने के बाद भी होटल लिया जा सकता था। पर 13-14 घंटे के सफर में थके शरीर को, सामान के साथ कहाँ-कहाँ ढोता ? इसी वजह से अच्छी तरह देखभाल कर, 1 रात के लिए होटल पहले दिन ही बुक कर दिया। 



शाम को छुट्टी होते ही घर की ओर बाइक दौड़ा दी। घर जाकर रेल का समय देखा तो रेल आज 3 घण्टे देरी से चल रही थी। इसका ग़ाज़ियाबाद आने समय 8 था पर ये रात को 11 बजे पहुँचेगी। अब जल्दी करने की कोई जरुरत नहीं थी। रेल देरी से थी तो मैं थोड़ी के लिए लेट गया। पर मुझे लेता देख नीतू बोली कि चलना नहीं है क्या ? रेल छूट जाएगी ऐसे ही आराम फरमाओगे तो.... । 
"आज रेल 3 घंटे लेट है " इस एक जवाब में नीतू के सभी प्रश्नों का उत्तर था। पर उसको इन एप पर जैसे विश्वास ही नहीं था। 
" मुझे विश्वास नहीं एप पर, ऐसे ना जाने कितने एप है जो गलत साबित  हुए है "
" वहाँ अभी जाने से कुछ फायदा नहीं। 3 घंटे स्टेशन पर ही बैठना पड़ेगा।"
" कोई बात नहीं हम स्टेशन पर बैठ लेंगे " वो मानने को ही तैयार नहीं थी। उसको लगा कि मैं मजाक कर रहा हूँ। 
" स्टेशन पर मच्छर परेशान कर देंगे, इससे अच्छा है कि कुछ देर घर पर ही आराम कर लेते है"
" कोई बात नहीं हमे मंजूर है। मच्छरों को भी देख लेंगे पर चलो।" घूमने की यह ख़ुशी और उत्सुकता उसके चेहरे और बातों से साफ़ झलक रही थी। ऊपर से मेरे बेटे को घूमना, चलना जैसे  शब्द कही से उसके कानो में पड़ जाये, उसके बाद तो उसको घूमने को जाना ही है चाहे कुछ भी हो जाये। नीतू के बार-बार "चलो" वाले शब्द यहाँ आग में घी वाला काम कर रहे थे। नतीजन नीतू के साथ-साथ अब बेटा भी चलने की जिद करने लगा। नीतू को कैसे-तैसे समझा भी देता पर बेटे को कैसे समझाऊँ ? कभी मुझे चलने को बोलता, कभी मेरा हाथ पकड़कर बाहर जाने के लिए खींचता और जब इनसे काम नहीं बना तो रोने लगा। बच्चे जिद करते है तो कोई बात नहीं वो नहीं करेगे तो क्या हम लोग करेगे ? लेकिन जब रोते है तो मेरा सर दर्द करने लगता है। इसी सर दर्द से बचने के लिए मैं चलने को तैयार हो गया। 
मेरे हाँ करते ही घर का माहौल ऐसा हो गया जैसे आज कोई त्यौहार हो। जो नादान मुझे रो कर दिखा रहा था वो फट से अपनी मम्मी के पास गया और बोला "मेरी सैंडल देदो जल्दी से नहीं तो डैडी मुझे यही छोड़ के चले जायेंगे।" 

इस तरह घर से निकलकर 8:30 बजे हम प्लेटफार्म न. 4 पर बैठ मच्छर मारने लगे। मच्छर इसलिए क्योंकि हमारी ट्रेन तो 11 बजे आनी थी। ट्रेन आती-आती और लेट हो गयी। समय बिताने के लिए मैं प्लेटफार्म पर इधर-उधर घूमने लगा तभी मेरी नज़र एक दीवार पर बनी कुछ तस्वीरों पर गयी। यह तस्वीर किसकी है यह तो मुझे पता नहीं पर कलाकार द्वारा बहुत ही सुन्दर बनाई गयी थी। यह काम एक संस्था द्वारा किया जा रहा है। जिसको हम सफाई अभियान से जोड़कर देख सकते है। अभी तो कुछ ही दीवारों पर तस्वीर बनाई गयी है पर धीरे-धीरे यह स्टेशन के सभी दीवारों पर दिखाई देगी। इनकी फोटो लेकर मैं फिर खाली पड़ी एक सीट पर पसर गया। इंतज़ार का समय थोड़ा और लंबा हुआ और रात 12:10 गाज़ियाबाद स्टेशन पर हमारी रेल आयी। 


ग़ाज़ियाबाद स्टेशन की एक दीवार पर की गयी कलाकारी। 








इस यात्रा का अगला भाग पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करे.... 






शिमला यात्रा के सभी भाग (आप यहाँ से भी शिमला यात्रा के सभी भाग पढ़ सकते है।)-

2. लो आखिर आ ही गयी ट्रेन- Lo Aakhir Aa Hi Gayi Train










12 comments:

  1. apko bahut deir intzaar krna pda station pr ..

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    1. ha satendar ji ...yatra ke doran kaha kitna samay lag jaye, pta nahi lgta.

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  2. Wah Gaurav Ji, very nice post.

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    1. शुक्रिया नितिन जी हौसला अफजाई करने के लिए...और इस मुसाफिर के साथ अनजानी राहों पर साथ चलने के लिए धन्यवाद..

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  3. दोनों तस्वीरें हमारे भारत के वीर सपूतों की हैं एक वीर तांत्या टोपे की है और दूसरी वीरांगना झांसी की रानी लक्ष्मी बाई की है

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    1. जी जानकारी के लिए आभार आपका। मैं ये जानकारी अपनी पोस्ट में जोड़ देता हूँ

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  4. shimla yatra ki yojna maine bhi banayi thi par kisi karanvash ja nahi saka, dekhiye kab jana hota hai, bahut acha vivaran hai par photo ki kami mahsoos ho rahi hai

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    1. आशा करता हूँ कि आप भी जल्द शिमला की वादियों का लुफ्त उठा सके...फोटो की इस पोस्ट में जो कमी है वो आपको आगे की यात्रा में नहीं मिलेगी... शुक्रिया

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  5. Waise train ka late hona bahut pareshan karta hai

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    1. जी अब तो हमे भी इसकी आदत पड़ गयी है।

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