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Monday 18 June 2018

खेल-खेल में- बरसुड़ी, उत्तराखंड - Khel-Khel me -Barsudi, Uttarakhand

दिनाँक- 13 अगस्त 2017,  दिन- रविवार

इस यात्रा को आरम्भ से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करे....  

अगली सुबह 6 बजे उठ कमरे से बाहर गया। मौसम भी खुशनुमा था और मन भी। सचिन जी भी उठ गए। जल्दी से तैयार हो, हम सब पंचायत भवन पहुंच गए। आज एजुकेशन कैम्प है, जिसका आयोजन गांव के स्कूल में होना है। जो यहाँ से 2 किलोमीटर नीचे है। सभी को वही जाना है। पंचायत भवन से कुछ सामान लेकर हम भी चल दिए। निरंतर ढलान उतरते रहे और फोटो लेते हुए चलते रहे। बीच में एक छोटे से झरने के दर्शन हुए, जहाँ लोहे का छोटा सा पुल बना हुआ है। झरने से बहुत कम पानी गिर रहा था। अभी कुछ समय बाद बरसात शुरू हो जानी है। तब इसका यौवन भी पुनः लौट आएगा। यहाँ से कुछ आगे जाने पर बरसुडी गांव का प्राइमरी स्कूल आता है। जिनके प्रधानाचार्य जी के घर पर मैं, सचिन भाई और मुस्तफा भाई, हम तीनो ठहरे हुए है। आज यहाँ जरा सी भी हलचल नहीं थी। कारण था कि आज इस स्कूल के भी सभी विद्यार्थी नीचे वाले बड़े स्कूल में ही जा रहे है। आज सभी को वही एकत्रित होना है। हमारी मंजिल भी वही है फ़िलहाल।
बातें करते हुए स्कूल जल्द ही आ गया। यहाँ हमसे पहले सहगल जी, सुखविंद्र जी, योगेश जी और माथुर साहब पहले ही आ गए थे। सभी एक पेड़ की शरण में थे। वहां से थोड़ा आगे ही विद्यार्थी अपने अध्यापकों के साथ मिल, आज के कार्यक्रम की तैयारी में पूरी ईमानदारी से मशगूल थे। 




धीरे-धीरे कर सभी बच्चे और हमारे मित्रगण आते रहे। कुछ एक मित्र के तो इतनी से चलने पर ही घुटने दर्द करने लगे। आज का प्रोग्राम तय समय से 1 घंटा देरी से शुरू हुआ जोकि कोई परेशानी की बात नहीं। इतना सब आयोजन करने में समय लगना तो लाजमी है। सूरज मिश्रा जो कल मेरे साथ मुरादनगर से आने वाले थे, वो कल रात मन्नू त्यागी जी के साथ कार से द्वारीखाल पहुंचे थे। ज्यादा देर होने की वजह से उन्होंने अपनी कार में ही कुछ समय विश्राम किया और सवेरा होने पर आगे का पैदल वाला रास्ता तय कर अभी यहाँ पहुंचे थे। पूरा माहौल ऐसा था जैसे शादी के समय घर का माहौल होता है - एक दम खुशनुमा, गर्मी थी पर उस तक किसी का ध्यान ही नहीं जा रहा था। सब एक दूसरे से बाते करने में पूरी तरह मशगूल थे। 



ऐसे ही हसते हसाते वह समय भी आ गया जिसके लिए आज हम सब यहाँ है। दिया जला जिसका शुभारम्भ किया गया। इसके बाद खेल प्रतियोगिता का सिलसिला शुरू हुआ। कबड्डी, दौड़, चम्मच दौड़ जैसी प्रतियोगिता ने बच्चों को बहुत खुश किया। जिसे देख हम सब फुले नहीं समा रहे थे। एक-एक करते बच्चें प्रतियोगिता के साथ-साथ हमारे दिलों को भी जीतते चले गए। बच्चों से ज्यादा खेलों का मजा हम ले रहे थे। माहौल इतना खुशनुमा था कि सभी एक ही उम्र के लग रहे थे चाहे वो बच्चें हो या हम। प्रतियोगिता को अल्पविराम देकर चाय और पकोड़ो का नाश्ता किया। नास्ते के उपरांत पुनः सभी लोग आगे की खेल प्रतियोगिता के लिए फिर से कमर कस मैदान में लौट आये। खेलों के बाद कुछ लिखित (सामान्य ज्ञान), मौखिक और कला संबंधित प्रतियोगिता भी हुई। जिसकी जिम्मेदारी सभी घुमक्कड़ मित्रों को दी गयी। बहुत मजा आया कुछ समय को ही सही पर अध्यापक वाली फीलिंग आयी तो। जिसका श्रेय उन छोटे-छोटे बच्चों को जाता है जिन्होंने हमे अध्यापक जितना प्यार और सम्मान दिया। 

अब सभी प्रतियोगिता सम्पन्न हो चुकी थी। और दोपहर के भोजन की तैयारी होने लगी। उधर मैं, बीनू जी, नरेंद्र जी और रुपेश जी सभी प्रतियोगिता में प्रथम, द्वितीय आये विद्यार्थियों  के लिए इनाम छाट रहे थे। इसी उपरांत सभी ने खाना खा लिया और ये काम निपटा हमने भी। और फिर शुरू हुआ विजेताओं को उनका इनाम देने का सिलसिला जिनके वो हक़दार है। जो विद्यार्थी किसी भी प्रतियोगिता में नहीं जीते या जिन्होंने किसी भी प्रतियोगिता में हिस्सा नहीं लिया। ऐसे बच्चों के लिए भी उपहार का इंतज़ाम हमारी टीम द्वारा किया गया। 



शाम हो चली। सभी अब वापस बरसुडी गाँव की तरफ हो लिए। अगले आधे घंटे में हम गाँव में पहुंच गए। गाँव के दूसरी ओर एक जगह है जिसे टंकी कहते है। मैं सचिन, मुस्तफ़ा योगेश भाई और अन्य मित्रों संग चल दिए। जहाँ पहाड़ो से आते पानी को एक टंकी में एकत्रित किया जाता है। जिससे पानी का इस्तेमाल नहाने, कपडे धोने इत्यादि के लिए किया जा सके। हममें से कुछ यहाँ नहाये और कुछ नहीं। अँधेरा पूरी तरह हो चला। हम भी अब गाँव वापस आ गए और पंचायत भवन में सब फिर से मिले और बातों के साथ रात के खाने का भी लुफ्त उठाया। आज मौसम थोड़ा ख़राब था। आसमान में बिजली चम-चमा रही थी। जल्दी खाना खा हम सभी रात्रि विश्राम के लिए अपनी-अपनी जगह पहुंच गए। रात को बारिश भी हुई। बहार गिरती बूंदो की आवाज बहुत ही राहत दे रही थी..... । 
अगली सुबह आसमान बिलकुल साफ़ था और आज का दिन मेडिकल कैंप के नाम था। आज पंचायत भवन में डॉ. प्रदीप त्यागी जी , नरेंद्र जी सचिन जी, नेगी जी ने इस सराहनीय काम की कमान भली भांति संभाली। आज का दिन मेरे लिए वापस जाने का दिन था। पहाड़ो पर जाना बहुत ही अच्छा लगता है पर वहाँ से वापस लौटना नहीं। सुबह का नाश्ता कर मैं बाइक उठा वापस हो लिया। आज मेरे अलावा बहुत मित्र वापस जाने को तैयार थे। योगेश, सचिन, मुस्तफा, माथुर जी आदि उनके नाम है जो आज वापस अपने-अपने घर लौटने को तैयार थे। वहां से में अकेला ही बाइक लेके चल दिया। अकेला था इसलिए बरसुड़ी से द्वारीखाल का 7 किलोमीटर का रास्ता आराम से पार हो गया। बिना रुके मैं चलता रहा अगले कुछ घंटों में मैं कोटद्वार को पार कर बिजनौर पहुंच गया। जहाँ मेरा पहला ब्रेक हुआ वो भी सिर्फ एक मिनट का। अब बस जल्द से जल्द घर पहुंचने के तलब थी। बिना कही रुके खतौली आ गया। गर्मी पूरी जोरों पर थी। खतौली दोपहर का खाना खा मैं फिर बाइक पर सवार जो गया। सुबह 9 बजे मैं बरसुडी से चला था और दोपहर 3:30 बजे मैं अपने घर पर था। इस तरह मेरी यह यात्रा सम्पन्न हुई। अंत में कुछ फोटो का आनंद जरूर लीजिये। 























































































इस यात्रा के सभी भाग आप यहाँ से पढ़ सकते है:-

1. सपनों का एक गाँव, बरसुड़ी, उत्तराखंड - A Village of dreams, Barsudi, Uttarakhand 

2. खेल-खेल में- बरसुड़ी, उत्तराखंड - Khel-Khel me -Barsudi, Uttarakhand 










1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (19-06-2018) को "कैसे होंगे पार" (चर्चा अंक-3006) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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