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Monday 13 February 2017

चिड़ियाघर, दिल्ली (भाग-2) - Delhi Zoo (Part-2)

22 जनवरी 2017, दिन- रविवार  (शेष भाग )


इस यात्रा को आरम्भ से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करे..... 





अब घूमते-घूमते थकान महसूस होने लगी थी। वैसे तो यहाँ घूमने के लिए बैटरी से चलने वाले वाहन भी थे। जिसमे बैठकर पूरे चिड़ियाघर पर नज़र दौड़ाई जा सकती थी बिना थके। लेकिन मैं इसके पक्ष में नहीं था। हम यहाँ घूमने को आये है और ना तो हमारी स्थिति पतझड़ के उस पेड़ के सामान है जिस पर अब कुछ ही पत्ते बचे हो। और ना ही उस लाट साहब की तरह जिसने आज तक अपनी कोमल काया को रास्तों, हवा, धुप, बरसात के समक्ष रखकर अपने आस-पास फैली खूबसूरती को पहचानने उससे दोस्ती करने उसकी तक़लिफों को समझने उससे रूबरू होने की कभी कोशिश तक ना की हो। मैंने तो हमेशा प्रकृति को तवज्जो दी है उसके लिए फिर चाहे कितना भी चलना पड़े कितनी भी थकान हो वो सब मेरे लिए मायने नहीं रखता। हालांकि जीता जागता मानव होने के कारण इन सब चीज़ों से मुझे भी परेशानी ज़रूर हो रही थी पर इन जीवों को देखने की मेरी लालसा ने थकान को मुझ पर हावी नहीं होने दिया। वैसे भी ऐसी
जगह वाहन से घूमने क्या मजा। एक चक्कर इस रोड पर लगा एक चक्कर दूसरी पर.....फिर तीसरी ...... फिर 1-2 घंटे में यहाँ सब देखकर बाहर का रास्ता ढूंढने लग जाओ। ये भी कोई घूमना हुआ। इससे अच्छा तो घर से ना ही निकलते तो वो ही मेरे लिए ज्यादा राहत देने वाला मलहम होता। 

हम पर समय की कोई कमी नहीं थी। घर से निकलते समय ही मैंने वक़्त के दो-चार खुल्ले सिक्के पहले ही अपनी जेब में ज्यादा डाल लिए थे। इन सिक्कों के  लगातार खनकने का शोर बढ़ता ज़रूर जा रहा था पर इनकी संख्या में अब तक कोई गिरावट मुझे महसूस नहीं हुई। मैंने पतलून की एक अलग जेब में इन्हें महफ़ूज़ रखा हुआ था ठीक उसी तरह जैसे एक छोटा सा बच्चा अपनी जेब में टॉफिया और कन्चे छिपाकर रखता है। मैं इसको ख़र्च बेशक़ करूँगा पर उस बच्चे की तरह ही थोड़ा-थोड़ा करके। 


इन्ही सब बातों को अपने दिल-ओ -दिमाग नाम के हाईवे पर दौड़ाते-दौड़ाते मेरी थकान कुछ और बढ़ सी गयी। अब इस पर ब्रेक लगाने की जरुरत सी लगने लगी। इतमें में हमारे बाईं ओर एक कैन्टीन दिखाई दी वैसे तो यहाँ थोड़ी-थोड़ी दूरी पर  कैन्टीन मौजूद है पर यह हमारे सबसे नज़दीक होने के कारण हमने इसको चुना और हमने वही कुछ देर रुकने का मन बनाया। चिड़ियाघर के अन्दर खाने के नाम पर तो सिर्फ सॉफ्टी (आइसक्रीम) ही मिली जो मैंने अपने लिए एक ले ली। धर्म पत्नी की चाय पीने की इच्छा थी सो उनके लिए एक चाय ले ली। चाय और सॉफ्टी लेकर हमने एक कम भीड़-भाड़ वाली जगह चुनी बैठने को। मैं सॉफ्टी खा रहा था पत्नी चाय पी रही थी लेकिन बेटा तो दोनों ही चीज़ के मज़े ले रहा था। एक बार चाय फिर सॉफ्टी फिर चाय फिर सॉफ्टी..... । उसकी यह नादान हरकत जारी रही। तक़रीबन 15 मिनट आराम करने के बाद यहाँ से चल दिए। 



जंगली भैंसा 



दरियाई घोड़ा (Hippopotamus)



दरियाई घोड़ा (Hippopotamus)



दरियाई घोड़ा बहुत ही विशाल जीव है। इसका वजन 3200 किलोग्राम तक होता है। ये नदी के धाराओ में आसानी से तैर सकता है। इसकी लंबाई 320 से 420 सेमी होती है। दरियाई घोड़ा पानी में बहुत ही फुर्तीला होता है और इसकी पानी में अधिकतम रफ़्तार 45 किलोमीटर प्रति घंटा होती है। मैं यहाँ तक़रीबन 20 मिनट रुका। इसके पानी से बहुत तेज़ बदबू रही थी। पर इसकी हरकतों को देखने की बहुत इच्छा थी। इसलिए ये गन्ध मुझे सहन करनी पड़ी। ये हर 5 मिनट में सास लेने के लिए अपनी नाक को पानी से बाहर निकलता और सास लेने के बाद तुरंत फिर पानी में छिप जाता। इसकी फोटो लेने के लिए यहाँ उपस्थित सभी लोगो को 5 से 10 मिनट तो इन्जार करना ही पड़ा। इन्तज़ार वो भी कैमरे की पोजीशन के साथ। क्योंकि वो सिर्फ 10 सेकंड को ही सास लेने को बाहर आता। आप इतने में उसका फोटो ले पाए तो ठीक नहीं तो फिर से 5 मिनट इन्तज़ार....... इनका जीवनकाल 40 साल का और मादा का गर्भकाल लगभग 9 महीने का होता है। वैसे तो ये अफ्रीका में पाए जाते है। और यहाँ इन्हें खाने के रूप में हरा चारा, गेहूँ, चना और केले जैसे और बहुत सी चीज़े मिलती है। 

मगरमच्छ 



मगरमच्छ 


   
धनेश (Great Indian Hornbill)




धनेश (Great Indian Hornbill)
धनेश- यह लगभग 4 प्रजातियों का बड़ा परिवार है। इनका वजन 2 से 4 किलो के आसपास होता है। इनका जीवनकाल 50 साल तक का होता है। ये पूर्वी दक्षिणी एशिया में पाये जाते है। इनकी लम्बाई 95 से 130 सेमी तक होती है। इनको आहार में सब्जियाँ, फल और उबले अण्डे दिए जाते है। मुझे धनेश बहुत ही सुन्दर लग रहा था। मैंने पहली बार इसको देखा। देखने में ये ऐसा लग रहा था जैसे किसी लकड़ी की बनावट पर पॉलिश कर रखी हो। इसकी चोंच बहुत ही बड़ी और मजबूत दिखाई पड़ रही थी। 

अफ्रीकी हाथी 



अफ्रीकी हाथी 


अफ्रीकी हाथी 


अफ्रीकी हाथी

ये अफ्रीकी हाथी दुनिया का सबसे बड़ा स्थल जीव है। संसार में दो तरह के ही हाथी होते है- अफ्रीकी और एशियाई। अफ्रीकी हाथी बहुत ही भारी भरकम होते है। इनका वजन 100 आदमियों के बराबर यानी 6000 किलो तक होता है। इनके कानों की आकृति अफ्रीका के नक्शे से मिलती-जुलती है। यह बहुत ही हैरान कर देने वाली बात है कि अफ्रीका में पाए जाने वाला हाथी के कान की बनावट, उसी देश के नक्शे से मेल खाती है। इनकी लंबाई 245 से 275 सेमी तक होती है। और ये 60 साल से 80 साल तक जीवित रहते है। मतलब इनकी उम्र और मनुष्य की उम्र लगभग एक समान है। मादा हाथी का गर्भकाल 20 से 22 महीने का होता है। इन्हें घास, फूल, पेड़ खाने में बहुत पसंद आते है। यहाँ इन्हें आहार में हरा चारा, चावल, फल जैसी चीज़े मिलती है। पर इस हाथी की दशा देख मुझे बहुत दुख हुआ। यह हमारे बहुत नज़दीक था। इसलिए जब ये चलता था तो इसके पैरो में पड़ी जंजीर की आवाज़ मुझे साफ़ सुनाई दे रही थी। इन जंजीरो की आवाज़ सुनकर मैं अपने मन के किसी कोने में बैठा खुद से ही सवाल करने लगा, कि कैसा है इनका जीवन ? जानवर ये है या हम ? "वास्तव में ये सब प्राणी, जीव, जंगलों के लिए बने है आज़ाद घूमने के लिए बने है और जंगल इन सबके लिए। इन सभी को अपनी मर्ज़ी से जीने का पूर्ण अधिकार है। यहाँ इन सबकी अहमियत मात्र एक जोकर जितनी है। जो लोगो का मनोरंजन करता है पर जिसे देख खुश होने वाले सभी लोग उसके दुख, परेशानियों से बेखबर रहते है।" हमने उनकी सुरक्षा के लिए यहाँ रखा हुआ है यदि हम ये कहते और सोचते है तो हम सत प्रतिशत गलत है। हमने सिर्फ अपने मनोरंजन के लिए इन सभी जानवरों को क़ैद कर रखा है। अपने मन की भीतरी दीवारों के कोनों पर लगे जालों को यदि साफ़ करे तो पता चलता है कि हम इंसान जो छोटे-छोटे घरों में रहते है। जब बिना घूमें हम नहीं रह सकते तो ये जानवर भला कैसे रह पाएंगे जो जन्मजात घुमक्कड़ है। 

कई सवालों को एक माला में पिरोते हुए हम यहाँ से आगे बढ़े। चिड़ियाघर के सभी रास्ते पक्की काली रोड़ के बनाये हुए है और उसके साथ-साथ पैदल यात्रियों के लिए फ़ुटपाथ भी। जगह-जगह सूचनापट भी लगे हुए है जो ये दर्शाते है कि कौन से जानवर का बाड़ा कहाँ है। और साथ ही अंदर प्रवेश करते वक़्त यहाँ एक पूरा नक्शा भी लगा रखा है। जिससे जानकारी हासिल कर सीधे अपने पसंदीदा जानवरों को देखने की लिए आगे बढ़ा जा सकता है। और सभी जानवरों के बाड़ो के पास उस जानवर से संबंधित सभी जानकारी आपको वहाँ लगे सूचनापट पर मिल जाएंगी।



हम चिड़ियाघर के अंतिम छोर पर पहुँच गये। जहाँ से यू (U) दिशा लेकर हमे वापिस आना था पर दूसरे रास्ते और दूसरे जानवरों के बीच में से होकर। यहाँ तक आते-आते लगभग यहाँ उपस्थित सभी लोगों को थकान हो रही थी जो उनके चेहरे को देखकर साफ़ दिखाई दे रही थी। कुछ लोग तो हमारी तरह वाहन सुविधाओं से परे अपनी यात्रा जारी रखना चाहते थे लेकिन कुछ वही फुटपाथों पर ही डेरा जमाये हुए अपने पैरों को पकड़े आसमान की ओर मुँह किये ना जाने क्या सोच रहे थे। उन्हें देखकर लग रहा था जैसे वो इसके लिए भी भगवान को दोषी मान रहे हो। और कह रहे हो कि हे भगवान! आज तुमने कहाँ फँसा दिया हमें। हम इंसानो की फितरत ही यही है। हम हर चीज़ का दोषी उस ऊपर वाले को ही ठहराते है। अब यही देख लो घूमना-फिरना (पैदल) हमने छोड़ाव्यायाम करना हमने छोड़ा, सादा और प्रोटीन युक्त खाने की जगह बहार के तले-भुने खाने को अपनी जीभा पर विराजमान ख़ुद हमने किया और यहाँ तक की चिड़ियाघर देखने भी ख़ुद अपनी मर्ज़ी से आये और जब इन सभी कारणों से जब चलना अपने बस में ना रहा, अपना शरीर जब अपने ख़ुद के ख़िलाफ़ एक विद्रोही बनके स्वयं के सामने ही आन खड़ा हुआ तो दोष की मटकी ऊपर वाले के सर पे दे मारते है। हम सभी लोग इस मानसिक बीमारी से ग्रस्त है। और ये ही हमारी (इंसान) हकीकत भी जिसको स्वीकार करने की ताकत शायद ही हममें कभी हो। जैसे ही कोई वाहन इधर से गुजरता था तो आस-पास बैठें लोग उसकी और इस प्रकार झपट रहे थे मानो ये वाहन इन्हें बाहर नहीं सीधा स्वर्ग ले कर जायेगा। जिसका मौका इसमें बैठने का लग जाता उसके चेहरे की मुस्कान फिर से अंगड़ाई लेने लगती और जो रह गए वो दूसरी गाड़ी आने की आस लेके वही दोबारा अपने शरीर को पटक रहे थे जहाँ से गाड़ी का लालच देकर उन्होंने उसे उठाने की हिम्मत की थी। इस आपाधापी को पीछे छोड़ हम जल्द ही अपनी धुन में फिर से खो गए।


एशियाई  हाथी 




एशियाई हाथी 



जगुआर
जगुआर, बिल्ली प्रजाति का तीसरा सबसे बड़ा जानवर है। यह छोटे जीव का शिकार करते है। लेकिन बड़े पशु, मवेशी का शिकार भी कर लेते है। इनका भार 96 किलो तक होता है। और इनकी दौड़ने की गति का तो जवाब नहीं ये मात्र कुछ ही सेकंडों में 80 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ़्तार पकड़ लेते है। ये मगरमच्छ का शिकार भी कर लेते है। इनके जबड़े बहुत ही मजबूत होते है। ये एक ही वार में अपने शिकार को चित करने का दम रखते है। इनका जीवनकाल 23 सालों का होता है।  जगुआर एकाक प्राणी है। और प्रजनन के समय को छोड़कर ये अकेले ही पाये जाते है। और ये तैरना भी बखूबी जानते है। मादा जगुआर का गर्भकाल 105 दिनों का होता है। यहाँ चिड़ियाघर में इन्हें खाने में भैस के कटड़े (बच्चेका मांस (सर्दियों में 6 किलो और गर्मियों में 5 किलो )दिया जाता है। और प्रत्येक शुक्रवार कुछ नहीं दिया जाता। इन्हें भूखा रख जाता है।






घड़ियाल 


घड़ियाल 


घड़ियाल बहुत ही शक्तिशाली जानवरों में से एक है। इसके 100 से भी ज्यादा दाँत होते है। जिनकी बनावट कुछ इस तरह है कि यह मछलियों को आसानी से दबोच लेता है। वैसे तो इसका प्रमुख खाना मछली है पर कभी कभी ये कछुए और छोटे स्तनधारी जानवरों को भी अपना शिकार बना लेता है। इसकी लम्बाई 4 से 5 मीटर होती है। और वजन लगभग 200 किलो। यह भी कहा जाता है कि यह मनुष्य के शवों को भी खा लेता है। अपने अजीब मुँह के कारण ये बड़े जानवरों का शिकार नहीं कर पता। घड़ियाल 75 साल औसतन जीता है। पानी में इसकी गति 18 किलोमीटर प्रति घण्टा होती है। यहाँ आहार में इसे 1.5 किलो मछली रोज़ाना दी जाती है।










ईमू (Emu)

ईमू केवल ऑस्ट्रेलिया में पाया जाता है। यह विश्व का दूसरा सबसे बड़ा बिना उड़ने वाला पक्षी है। यह 150 से 190 सेमी तक लम्बा होता है। इसका मुख्य खाना फल, बीज, अंकुरित पौधे और कीट है। यह कुछ छोटे जीव और जीवों का मल भी खाता है। यह 18 से 48 किलो का होता है। और ये 40 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से दौड़ सकता है। ईमू का जीवनकाल केवल 10 साल का ही होता है। मादा ईमू  का गर्भकाल 52 दिनों का होता है। ये एक बार में 9  से 20  अण्डे देती है। इनके बच्चे अपने पिता के साथ ही रहते है। चिड़ियाघर में इन्हें फल, मांस, सब्जियां, उबले अण्डे जैसी चीजें दी जाती है। 



अजगर

अजगर का वैज्ञानिक नाम पायथॉन मोलुरस है। यह दागदार धब्बो वाला भारी साँप है। ये पेड़ो पर रहता है। इसका प्रमुख शिकार हिरण, गीदड़ और कुत्ते है। यह कई दिनों तक भूखा रह सकता है। यह पानी के अंदर भी कुछ मिनट तक रह सकता है और यह बहुत ही अच्छा तैराक भी है। इनका जीवनकाल 20 से 30 साल होता है। और इनकी लम्बाई 366 से 457 सेमी तक होती है। हमारे सामने यह आलस की एक मूरत बने यूँ ही पड़ा रहा।

इनके अलावा और भी बहुत से जानवर यहाँ मौजूद थे। जिन्हें देखा तो पर ओट में होने की वज़ह से उनका फ़ोटो नहीं ले पाया। 

हमने यहाँ शेर भी देखा। पर वो लोगो से दूर छिपकर बैठा था। उसे लोगों की उपस्थिति शायद पसंद नहीं रही थी। ज्यादा दूर होने की वज़ह से उसका फ़ोटो नहीं ले पाया। मैंने इंतज़ार भी किया तक़रीबन 20-25 मिनट तक। लेकिन शेर भी जैसे अपनी ज़िद पर था। वो टस से मस नहीं हुआ। 


तेंदुआ 


पक्षियों में छोटा पीली-कलगीदार कौकेटू, बेयर आईड कौकेटू, अफ़्रीकी धूसर तोता, भूरा मछली उल्लू, काली चील जैसे बहुत से पक्षी यहाँ देखें।  


इसके अलावा कस्तूरी बिलाव, श्वेत मृग, भेड़िया, साही, बोनट बन्दर, तेंदुआ और भारतीय गैंडा जो एशिया का सबसे विशालकाय गैंडा है जैसे बहुत से जानवर देखने को मिलें।  


आज का दिन बहुत ही अच्छा और बाकी दिनों से एकदम हटके रहा। जहाँ दरयाई घोड़ा, मगरमच्छ, साही, गैंडा जैसे जानवरों को देखकर मन ख़ुश हुआ तो वही हाथी के पाँव में पड़ी जंज़ीर को देखकर कई सवालों ने मेरे दिल को कुरेदना शुरू कर दिया। शायद इसे ही यात्रा कहते है। कुछ मीठे कुछ कड़वे अनुभव ये दोनों ही हमारी यात्रा का हिस्सा होते है जो हमारे जेहन में हमेशा के लिए ज़िन्दा रहते है। अपने इन खट्टे-मीठे अनुभवों को मैं यहाँ से अपने जेहन में दबाये चल दिया। 

अब यहाँ से चलने का समय हो गया था पर मैं कुछ देर और यही बैठना चाहता था। इसलिए अपने दायीं ओर बने फुटपाथ पर जा कर आराम करने लगा। इसी बीच हमने अपने कुछ फोटो भी लिए। तक़रीबन 30 मिनट यहाँ आराम करने के बाद चिड़ियाघर के सभी जानवरों को बाय किया और चल दिए। 


बाहर निकलकर लॉकर से अपना बैग लिया। समय 5 का हो रहा था। अब भूख भी बहुत जोरों से लग रही थी। आज सुबह घर से निकलते समय ही खाना खाया था। तब से बस एक सॉफ्टी और नीतू के लिए चाय ली थीं। चिड़ियाघर के बाहर ही बहुत सी दुकानें थी पर मैं पहले ही किसी और जगह को शाम के खाने की लिए चुन चुका था। इसलिए बेटे के लिए चिप्स लिए और घर की तरफ रुख कर लिया। रास्ते में स्थित मोहननगर के पास आहूजा रेस्टोरेंट पर खाने के लिए बाइक रोक ली। पनीर बटर मसाला, बटर रोटी, बूंदी का रायता ऑर्डर किया। खाना बहुत ही लाजवाब था। खाना खा हम घर की ओर हो लिए। हमारी यह बाइक यात्रा 56 किलोमीटर की एक सुखद यात्रा रही।




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1 comment:

  1. Wah ! bahut hi umda lekh, apke dvara hume padhne ko mila

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