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Monday 24 July 2017

ऋषिकेश: गंगा, योग और आयुर्वेद का अनूठा संगम - Unique Confluence of Ganga, Yoga and Ayurveda


ऋषिकेश स्टेशन की खूबसूरती और शांति मन को भा रही थी। लेकिन आगे तो बढ़ना ही था। इसलिए स्टेशन से बाहर निकल एक ऑटो में राम झूला जाने के लिए बैठ गया। सुबह का वक्त था, भीड़ का तो कोई मतलब ही नहीं था। इसलिए 5 मिनट में ही, मैं राम झूला पहुंच गया। 

ऋषिकेश, उत्तराखंड के देहरादून जिले में आता है। यह समुंद्र तल से लगभग 1300 फीट ऊचाई पर है। गंगा वैसे तो गौमुख से निकलती है पर कई छोटी-छोटी नदियों के संगम से इसका रूप और विशाल हो जाता है। ऋषिकेश में हमारी पवित्र गंगा, पहाड़ों की डगमगाती गलियों को पीछे छोड़, सीधे और सरलता से बहना सीख
लेती है। यहाँ से गंगा पहली बार मैदानी छेत्र हरिद्वार में अपना पहला पवित्र कदम रखती है। 
जहाँ से मुख्य गंगा नदी गढ़, अनूपशहर, कानपुर होते हुए इलाहाबाद पहुँचती है। इलाहाबाद में ही गंगा और यमुना नदी का संगम होता है।इलाहाबाद से आगे वाराणसी, पटना, भागलपुर को जाती है। इस बीच भी गंगा का बहुत सी नदियों से संगम होता है। और गंगा नदी का एक छोटा सा अंश हरिद्वार से मुरादनगर, डासना-मसूरी की ओर भी आता है। वर्तमान में मुरादनगर में बहने वाली गंगा, छोटा हरिद्वार के नाम से जानी जाती है। गंगा हमारे लिए आस्था का प्रतीक तो है ही साथ में हमारे देश की कृषि का एक बड़ा हिस्सा इसी पर निर्भर है। यह ना केवल हमारी बल्कि किसानों के खेतों की प्यास भी बुझाती है। ऋषिकेश को योग का गढ़ भी कहे तो कोई गलत नहीं होगा। यहाँ बहुत से आश्रम है जहाँ रहकर लोग योग से तन, मन और आत्मा को शांत रखने के गुण सीखते है। स्वर्ग आश्रम को ऋषिकेश का सबसे प्राचीन आश्रम माना जाता है। यूँ तो योग और आयुर्वेद दोनों का चलन भारत में कई हजार वर्षों से चला आ रहा है। लेकिन बीच में कुछ दशकों तक इन दोनों का ही कुछ अता-पता नहीं रहा। दूसरे शब्दों में कहूँ तो कुछ समय तक हम इनसे इतनी दूरी बनाये हुए थे कि उस समय यह यकीन कर पाना बहुत मुश्किल था कि ये दोनों ही हमारी संस्कृति का हिस्सा है।  धन्य हो रामदेव बाबा और उन जैसे और ज्ञानी मनुष्य का जिन्होंने योग और आयुर्वेद को न केवल दोबारा से जीवित किया बल्कि इनकी लोकप्रियता का भी विस्तार किया। आज हमारे साथ-साथ दूसरे देश के लोग भी योग और आयुर्वेद की ताकत को पहचानने लगे है। इसलिए केवल देश के ही नहीं विदेश के भी बहुत से लोग इनको अपनाने के लिए भारी संख्या में यहाँ आते है। पवित्र गंगा किनारे योग और आयुर्वेद का यह संगम अद्धभुत है। 

'चलो जल्दी से नहा लिया जाए फिर आगे का सफर समय से पूरा करना है" यही मैंने खुद से कहाँ। इस पूरी यात्रा में जो कुछ बात मुझे करनी है वह खुद से ही करनी है। मेरी कोई बात बुरी लगे ऐसा कुछ सोचने की मुझे जरुरत नहीं। व्यक्ति खुद से अक्सर वही बात करता है जो स्वयं को पसंद हो। इसलिए एकल यात्रा का एक फायदा यह भी है। बैग खोल देखा तो आँख तो खुली ही साथ में दिमाग भी खुल गया। मैं घर से तौलिया लाना भूल गया। धत तेरी की..... अब क्या करू... कैसे करूँगा ? आस पास की मार्किट छानी पर सुबह 6:30 बजे कौन मेरे लिए दुकान खोले बैठाता ? तक़रीबन 10 मिनट तक तलाश जारी रही पर परिणाम शून्य। फिर ऐसे समय में एक ही बात दिमाग में आती है "जुगाड़" जिसमे हाथ आजमाने में मैं भी कुछ कम नहीं। सुबह के समय होने के कारण ज्यादा चहलपहल नहीं थी। मेरी नज़र एक घाट पर गयी जहाँ कोई नहीं था। बस मौके पर चौका लगाते, समय नहीं लगा। घाट पर पहुंच कपड़े निकाल पानी में पैर रखा तो मई के गर्म मौसम में भी सर्दी का एहसास हुआ। यहाँ पानी बहुत ठंडा रहता है। इसलिए गर्मी में भी ज्यादा देर तक पानी में रह ही नहीं सकते। थोड़ी-थोड़ी देर में  पानी से बाहर आना पड़ता है। घाट की नीचे की 2 सीढ़िया पानी के अंदर डूबी हुई थी। वहां तक के सफर में कोई परेशानी नहीं हुई। अब बारी नीचे पानी में उतरने की थी। मैं दोनों हाथों से सीढ़ियों पर बल डालते हुए, अपने शरीर को आराम-आराम से पानी में छोड़ रहा था। मेरे पैर, नीचे जमीन तलाशने में व्यस्थ थे। पानी अब छाती को लगभग छू चुका था फिर भी पैरों की खोज अभी जारी ही थी। हाथों को किसी अनहोनी की बू आने लगी। तभी लड़खड़ाते हाथों ने बिना विलम्ब किये शरीर को अपनी ओर वापस खींच लिया। यह शिलशिला 2 बार हुआ लेकिन पैरों को अपनी खोज में कामयाबी नहीं मिली। तीसरी बार अब मैंने ही कोशिश नहीं की। एक तो पानी का बहाव इतना तेज और छाती तक पानी आने पर भी मेरे पैर ज़मीन को छू भी ना पाए। ऐसे में ज्यादा रिस्क लेना मुझे भारी पड़ सकता था। और यदि इस कोशिश में बह भी गया तो इस घाट पर मेरे अलावा कोई दूसरा सख्श भी नहीं है जो शोर भी मचा दे या बचाने की कोशिश करे.....। हालात को समझते हुए सबसे निची सीढ़ी पर बैठकर ही नहाने में भलाई समझी। इतने में एक आदमी घाट पर नहाने को आ गया। मैं मन ही मन कहने लगा कि इसे भी अभी आना था। और 5 मिनट ये नहीं आता तो मैं मेरा आज का सबसे मुश्किल काम जो तौलिये की वजह से अटका है वो पूरा हो जाता। अब कैसे करूँ ? उसने अपने कपड़े निचे रखे। मुझे उसके कपड़ों में वही चीज़ नहीं दिखी जिसकी आज मुझे सबसे ज्यादा जरूरत है। मैंने बिना देरी किये उससे पूछा कि तौलिया नहीं लाये क्या ? मैंने उससे ये सोचकर बोला कि वो होटल में ही भूल आया है और समय रहते उसको याद दिलाना जरूरी लगा। वार्ना उसकी हालत भी कुछ समय बाद मेरी ही तरह हो जाती। पर उसके जवाब ने मुझे चौका दिया। 

"घर से लाना भूल गया और यहाँ अभी दुकान नहीं खुली। और मुझे घर के लिए निकलना भी जल्दी  है। "
पल भर के लिए तो मुझे ऐसा लगा जैसे वो जानभूझकर मेरी बात दोराह रहा है। लेकिन वो तो मेरी बातों से अनजान था। इसलिए यह भ्रम ज्यादा देर नहीं टिक सका। अब मुझे हसी आने लगी और लगा इस घाट का नाम "घाट बिन तौलिया" रख देना चाहिए। मैं तो हूँ ऐसा, जो आया वो भी मेरे जैसा ही निकला। 
"पानी कितना गहरा है यहाँ" उसने मुझसे पूछा 
"पता नहीं मैं नाप नहीं पाया। तभी सीढ़ियों पर बैठ के नहा रहा हूँ।"
"फिर भी कुछ अंदाज़ा लिया या डर गए पानी का बहाव देख ?"
"मेरी छाती तक पानी आ गया था पर मेरे पैर जब तक भी नहीं टिके। उसके बाद मैंने कोशिश नहीं की। एक काम करों तुम देख लो कितना पानी है फिर खुद तुम्हे भी अंदाज़ा हो जायेगा और मुझे भी। 
"नहीं-नहीं मरना कोई है मुझे। तुम्हारी लम्बाई अच्छी है और जब तुम ही नहीं देख पाए तो मैं तो तुमसे लम्बाई में कम ही हूँ। और वैसे भी जीवन है तो सब कुछ है। मैं यही सीढ़ी पर बैठ ही नहा लूंगा।"
"मर्ज़ी तुम्हारी"
अब तक मैं नहा चुका था। मैंने रात पहनी कमीज को तोलिये का रूप दिया और कपड़े बदल निकल गया नास्ते की खोज में। 


प्रातः 



कुछ ऐसी ही तस्वीरें हम बचपन में बनाया करते थे। 



भोर 


राम झूला 



राम झूला 



राम झूला 

राम झूला 


ऊपर राम झूला और नीचे बहती गंगा 



राम झूला का दूसरी तरफ से लिया गया फोटो 



जल पुलिस सदैव हमारे साथ 










गंगा तेरा पानी अमृत 



ऋषिकेश से गंगा का दृश्य 







3 comments:


  1. वह तौलिया न ले जाने का खामियाजा आज आपको भुगतना पड़ा, हम जिस तौलिये को घर में इधर उधर फेक देते हैं आज उसने आपको बहुत परेशान किया,

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    1. जी बिलकुल सिन्हा जी ऐसे मौको पर ही चीज़ो की कीमत का पता चलता है।

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