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Monday 2 January 2017

बाइक से मसूरी और धनोल्टी की यात्रा

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अगले दिन सभी 6 बजे उठ गए। बाहर बालकनी में मौसम का जायजा लेने गया तो अक्टूबर के हिसाब से ठण्ड अच्छी खासी मिली और कोहरा भी। तैयार होकर 8 बजे हम यहाँ से निकल गए। सबसे पहले हम उसी रेस्टॉरेन्ट में नाश्ते के लिए गए, जहाँ हमने कल रात खाना खाया था। छोले भटूरो ने हमारे नाश्ते की शान बढाई। उसके बाद हमने चाय पी। अब हम हर तरह से घूमने को तैयार थे। मसूरी उत्तराखंड के देहरादून जिले में पड़ता है। यहाँ के लोगो से मिली जानकारी के अनुसार, यहाँ प्रचुर मात्रा में  पाए जाने वाले मंसूर नाम के पौधे के कारण इसका नाम मसूरी पड़ गया है। मसूरी गढ़वाल हिमालय के शिवालिक श्रेणी में स्थित है। यह बहुत ही लोकप्रिय पर्यटन स्थल है। और दिल्ली के सबसे नजदीक पर्यटन स्थलों में से एक है। जिसके कारण काफी संख्या में लोग यहाँ घूमने के लिए आते है। लेकिन ज्यादा संख्या में पर्यटको के आने से यह शहर जाम,पानी और गंदगी जैसे मुख्य परेशानी से झूझता हुआ प्रतीत होता है। शर्दियो की अपेक्षा यहाँ गर्मियो में अधिक पर्यटक आते है।  


बाइक से ही हम लाल टिब्बा देखने चल दिए। अब तक सब सामान्य था, लेकिन कुछ ही देर बाद बिलकुल खड़ी चट्टान जैसा रास्ता हमारे सामने था। रास्ता इतना खड़ा (↗) था यदि बाइक बीच में रुक गयी तो ब्रेक लगाने पर भी नहीं रुकेगी और पीछे की तरफ भागेगी।  जिससे संतुलन बिगड़ेगा और बाइक गिर जाएगी। मैं पहले गेर में ही बाइक इस चढ़ाई पर चलाता रहा। यहाँ की चढ़ाई का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है। यहाँ एक कार फस गयी। कार वाले ने हर तरह से कोशिश कर ली पर कार आगे तो बढ़ी नहीं उलटा उसमे से धुंआ निकलने लगा। लेकिन हमारे लिए एक नया माहौल होने के कारण बाइक चलाने में मजा भी आ रहा था। कुछ ही देर में हम चार दुकान होते हुए लाल टिब्बा पहुँच गए। यहाँ का वातावरण बहुत ही शांत था।  जो कानो को बहुत ही सुकून दे रहा था। लाल टिब्बा यहाँ मुख्य आकर्षक केंद्रों में से एक है। इसकी समुंद्री तल से ऊँचाई लगभग 2438 मीटर (8000 फ़ीट) है। यह मसूरी की सबसे ऊँची चोटी है। स्थानीय लोग दूरबीन की सहायता से यहाँ के नज़ारे दिखाते है। हमने भी बारी-बारी से इस दूरबीन से यहाँ के नज़ारे देखे पर हमारी किस्मत ने इतना साथ नहीं दिया जितना हमे उम्मीद थी। यहाँ से दूर स्थित गांव के घर तो इस दूरबीन से दिखाई दे रहे थे लेकिन बादल ज्यादा होने के कारण दूर स्थित पहाड़ो को ठीक से देख नहीं पाये। मुझे लगा कि हम बहुत ऊँचाई पर आ गए।  पर जब अपने सामने खड़े पहाड़ो पर नज़र पहुची तो जल्द ही सब साफ हो गया। ये पहाड़ सीना ताने गर्व के साथ खड़े थे। जहाँ हम खड़े थे वो ऊँचाई तो उनकी उँचाइयो के सामने कुछ भी नहीं थी। लेकिन भविष्य में  उन पहाड़ो की सुन्दरता से अपना परचिय जरूर करूँगा।  ऐसा मन ही मन विचार किया। यहाँ बैठकर हमने कॉफ़ी का आनंद लिया।  हम काफी समय तक यहाँ बैठे रहे और कुछ फोटो भी लेते रहे। यहाँ का वातावरण दिमाग को एक दम शांत कर देता है। मेरा दावा है कि यहाँ आकर आप सब कुछ भूल जायेगे।




























बदलो के कारण दूर स्थित पहाड़ ठीक से नहीं दिखाई के रहे है। 

यहाँ से वापिस चलने का मन तो बिल्क़ुल नहीं था लेकिन यदि हम नहीं गए तो अपनी द्वारा बनायीं योजना से पीछे हो जायेंगे। और जो नहीं होना था वो ही हुआ।  हमने यहाँ जरुरत से ज्यादा समय बिता लिया जिससे ओर जगह घूमने का समय बहुत ही कम बचा। यहाँ से हमे गन हिल जाना था।  इसलिए अब ओर देर किये निकल गए।  हम बाते करते हुए चल रहे थे इसलिए गन हिल का रास्ता कब पीछे छूट गया, पता भी नहीं चला। और जब पता चला तब तक हम जाम में बुरी तरह फस चुके थे। कैसे-तैसे जाम से निकलकर वापस गन हिल की तरफ आये तो यहाँ गन हिल जाने वाली ट्रॉली पर भीड़ देखकर मुंड और ख़राब हो गया। हम पहले से ही बहुत लेट थे और बचा कुचा समय जाम में लग गया। अब गन हिल जाने के लिए भीड़ देखकर लग रहा था कि यहाँ कम से कम 1 घंटे में अपनी बारी आएगी। वैसे तो गन हिल पर पैदल जाने का भी रास्ता है लेकिन हमारा मन ट्रॉली से जाने का था। "वैसे एक बात और आपको बताता हूँ  कि मसूरी की सुंदरन्ता देखकर मैं मन बना चूका था कि अगली बार यहाँ परिवार के साथ जरूर आऊंगा और सारा समय मसूरी में ही बिताऊंगा। जिन जगह पर अब नहीं जा पा रहा हूँ , इन सब जगह पर परिवार के साथ आऊंगा। "  हमारे पास समय काम था और हमे आज ही धनोल्टी होते हुए चम्बा जाना था।  इसलिए समय के आभाव से खाली हाथ ही यहाँ से लौटना पड़ा।  सच में यह मेरे लिए बहुत ही बुरा समय था।

हम यहाँ से धनोल्टी के लिए निकल गए। मसूरी से धनोल्टी की दूरी लगभग 24 किलोमीटर है। यह मसूरी-टिहरी रोड पर पड़ता है। इस रास्ते पर ट्रैफिक ना के बराबर था।  यह देखकर सभी के चहरे फिर से खिल गए। बहुत ही शांत और खाली पहाड़ी रास्तो पर बाइक चलाने का ये अनुभव ही मेरे लिए खास था। इस रास्ते पर अधिकतर धनोल्टी की तरफ से बाइक वाले आ रहे थे।  गाड़ी तो गिनी चुनी ही नज़र आती थी। यहाँ इतनी शांति थी कि हवा चलने की आवाज़ भी आसानी से कानो में पड़ रही थी। मसूरी से कुछ किलोमीटर निकलते ही अलग ही किस्म के नज़ारे सामने आने लगे। यहाँ की शांत और ठंडी हवा किसी का मन मोह लेने की लिए काफी थी। लेकिन इसके अलावा भी बहुत कुछ था, जो हमे अपनी ओर आकर्षित कर रहा था। यहाँ बने सीढ़ीनुमा खेत सुन्दरता की एक अलग ही मिशाल पेश कर रहे थे। हमे जहाँ का भी दृश्य भाता, वही पर हम बाइक रोक देते। कुछ देर वही बैठते और फिर आगे चल देते। मुझे बाइक से सफर करने का ये सबसे बढ़िया फायदा लगता है। जहाँ भी रुकने का मन करे वहाँ फट से रुक जाओ। और आपकी नज़रो से कोई भी नज़ारा ओझल नहीं होता। सब आपके सामने ही होता है और आप आसानी से उसे देख सकते हो वो भी ठंडी हवाओ को महसूस करते हुए। गाड़ी वाले तो काफी कुछ तो देखने से इसलिए छोड़ देते है क्योकि वहाँ गाडी खड़ी करने की जगह नहीं होती या उन्हें वो नज़ारे नहीं दिख पाते। जबकि बाइक वाले हमेशा ही इन बातो से बचे रहे है। लेकिन ऐसा नहीं कि कार से घूमने में मजा नहीं आता।  दोनों वाहनों से घूमने का अपना अलग ही अनुभव है। पर जहाँ तक अपनी बात करू तो , मुझे बाइक से घूमने में ज्यादा मजा आता है।

रास्ते में एक दुकान से हमने कोल्डड्रिंक और कुछ चिप्स के पैकेट ले लिए। कुछ आगे चलकर हमने एकांत में बाइक रोक ली। और वहाँ आराम से बैठकर हमने चिप्स और कोल्ड्रिंक का भलीभाँति आनंद लिया। यहाँ हमने आधा घंटा बिताया और इस आधा घंटे ने मेरे जीवन के हसीन पलो में अपना स्थान बना लिया। वाकई में यहाँ के शांत और स्वछ वातावरण ने मेरा मन मोह लिया। कभी मौका लगा तो यहाँ दोबारा जरूर आना चाहूंगा। रास्ते में कही-कही तो इनती ढलान थी कि मैंने बाइक बंद कर दी और बाइक 30-40 की स्पीड से अपने आप ढलान पर चलती रही। हमे ऐसा करने में बड़ा मजा आ रहा था। ये सब हमारे लिए एक खिलौने की तरह था। काफी दूर तक हमने इसी तरह बाइक चलाई। मसूरी-चम्बा रोड पर हम जबरखेत, भटाघाट, सुवाखोली होते हुए धनोल्टी पहुँच गए। आज हम बहुत धीरे-धीरे, यहाँ के वातावरण का आनद लेते हुए चल रहे थे और हम मसूरी से भी बहुत देर से चले।  जिसका प्रभाव हमारी शेष यात्रा पर पड़ना तय था। इसी वजह से हमने धनोल्टी आते-आते दोपहर के 3 बजा दिए। हमे धनोल्टी घूम कर आज ही कम से कम चम्बा तो पहुँचना था। इसलिए यहाँ से निकलने की जल्दी भी थी। पर चम्बा यहाँ से इतना दूर भी नहीं है कि वहाँ जाने में रात हो जाये। इसलिए कुछ समय तो यहाँ बिता ही सकते है। यहाँ एडवेंचर कैंपो की भरमार है। जहा तरह-तरह के जोखिम भरे खेल खेले जाते है जैसे- एक रस्सी के दोनों छोरों को, अच्छी खासी उचाई पर दो पेड़ो के बीच बाँध दी जाती है। इसकी उचाई 80 से 100 फ़ीट और लम्बाई 300-350 फ़ीट हो सकती है। और आपको इस रस्सी पर बिना संतुलन खोये इसके एक छोर से दूसरे छोर तक जाना है। जिसे स्काई वॉक कहते है। डरो मत इसे करते समय सुरक्षा का पूरा ध्यान रखा जाता है। इस तरह के काफी गतिविधि इन कैंपो में होती है। और ये बहुत मजेदार होती है। हालांकि हम इन सब से दूरी बनाये हुए थे। 

हमने इको पार्क के सामने बाइक रोक दी। टिकट लिया और आगे बढ़ गए। इको पार्क कही से भी समतल नहीं है। यह पहाड़ को काटकर बनाया गया है इसलिए अंदर जाते समय थोड़ी चढ़ाई जरूर मिलेगी। यह पार्क भी देवदार के पेड़ो से सजा हुआ था। जो इसकी खूबसूरती को बढा रहे थे। पार्क में घूमते हुए हम इसके सबसे ऊपरी छोर पर गए, जहाँ से सुन्दरता के कुछ ओर नज़ारो का दीदार हो सके। पर किस्मत ने हमारा जरा सा भी साथ नहीं दिया। यहाँ बादल इनते ज्यादा थे कि कुछ भी देख पाना नामुमकिन था। वहाँ उपस्थित किसी भी पर्यटक के लिए यह अच्छी खबर नहीं थी। एक घुमक्कड़, मन में सपने बुनता आये, मैं ये देखूंगा, वो देखूंगा और अंत में जब उस जगह पर पहुँचे तो उसे वहाँ पर कुछ भी दिखाई न दे। वो भी प्रकृति की वजह से। तो आप समझ सकते है कि उसको कैसा लगेगा। हमारी हालत भी कुछ ऐसी ही हो चूँकि थी। सकारात्मक के साथ जो भी हमे दिखाई दिया उससे ही काम चला लिया। तक़रीबन हमने यहाँ 1 घंटा बिताया, जिसमे ज्यादातर समय हमने एक-दूसरे के फोटो लिए। समय 4:30 का हो गया था। यहाँ से निकलकर, हम चम्बा की ओर रवाना हो गए। 












बदलो का जमावड़ा 








नीचे की तरफ दिखाई देते सुन्दर सीढ़ीनुमा खेत 










































सामने वाली पहाड़ी को घेरे बादल 












आराम फरमाते हुए 


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3 comments:

  1. Lal Tibba hum bhi gaye the. bahut hi badhiya jagah hai. yaha se vapas aane ka man nahi krta. laikin hum dhanolti nahi gaye. par apki is post ke sath humne bhi vha ki yatra kar li.

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  2. Gazab ka lekh hai gaurav ji apka

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  3. धनौल्टी का इको पार्क कुछ वर्ष पहले ही बनाया गया है। सन २००३ में इसे पहली बार देखने का मौका लगा था, तभी सरकुन्डा देवी की यात्रा भी पहली बार की गयी थी।

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