13 मई 2017, दिन- शनिवार
कुछ दिनों से एक किताब पढ़ रहा था। जिसका नाम है "आज़ादी मेरा ब्रांड" जिसमे एक लड़की की यात्रा वृतांत है। जिसने यूरोप के कई देशों की सैर की है और वो भी अकेले (Solo) ही। और वे अकेले यात्रा करके बहुत खुश भी थी। मेरा भी मन ऐसी ही किसी यात्रा की ओर झुकने लगा। किताब पढ़ते-पढ़ते मेरा भी मन हुआ कि क्यों ना मैं भी कभी अकेले यात्रा करू। मेरे अकेले यात्रा का क्या अनुभव रहेगा? मेरी खुशी का पैमाना नीचे को गिरेगा या ऊपर चढ़ेगा ? ऐसे अनगिनत सवालों के जवाब देने को मैं उतावला होता रहा।
मई माह में श्री नीलकंठ दर्शन को जाने पर विचार बना। नीलकंठ इसलिए, क्योंकि एक तो काफी समय से मैं भक्ति भाव से दूरी बनाये हुए हूँ। जो एक दम से जाग गयी। दूसरा, ऑफिस में बैठे हुए हमेशा कुर्सी ही तोड़ते रहते है। यदि ऋषकेश से नीलकंठ पैदल जाया जाए तो अपनी पैदल चलने की छमता का पता चल जायेगा जिसे काफी समय से जाँचा नहीं गया और यदि यह यात्रा सफलतापूर्वक पूरी हो गयी तो शारारिक और दिमागी क्षमता में इजाफा होगा। तीसरा, ये कि घर के अन्य कामों की वजह से फ़िलहाल ज्यादा दिन को बाहर नहीं जा सकता। चौथा और अंतिम यह कि मुझे अकेले यात्रा करने का भूत सवार हो गया। इसलिए हर लिहाज से ऋषिकेश और श्री नीलकंठ की यात्रा ही मुझे भा रही थी।
लेकिन चौथी वजह मुझे खटाई में पड़ती लग रही था। वजह थी मेरी आदत जिसके अनुसार मैंने अपने कुछ मित्रों को साथ चलने को बोला। जिसमें से 2 मित्रों ने साथ चलने की हामी भी भर ली। पर मेरे लिए हामी भरना और साथ चलना दोनों अलग-अलग बात होती है। हाँ करना मेरे लिए ना ही है जब तक वो मित्र, सहयात्री न बन जाये।
13 मई की सुबह मैं फिर से अकेला ही रह गया। अब खुराफाती दिमाग ने एक पोस्ट फेसबुक पर डलवा दी कि भाई श्री नीलकंठ दर्शन को जा रहा हूँ। कोई साथ चलेगा क्या .....? काफी दोस्तों ने इस पर तुरंत जवाबी कारवाही की। कैसे, कब, कहाँ ..... जैसे सवालों का चक्रव्यहू बुन डाला। मैंने सब बता दिया कि यह यात्रा शनिवार शाम को घर से शुरू होगी और अगली सुबह ऋषिकेश पहुँचकर वहां से पैदल नीलकंठ की ओर जाया जायेगा। दर्शन कर फिर वापस ऋषिकेश तक भी पैदल ही आया जायेगा। और वहाँ से ट्रेन या बस पकड़ रविवार रात तक घर। लेकिन यह जानकर सबने अपनी-अपनी इच्छारूपी बाणों की मुझ पर बौछार कर दी। एक कहता की एक तरफ से पैदल चलते है और दूसरी तरफ से गाडी कर लेंगे। दूसरा कहता है कि घर से ही अपनी गाड़ी में चलेंगे और पैदल बिलकुल भी नहीं चलेंगे। कोई कुछ .....कोई कुछ .....बाणों की बौछार मुझ पर निरंतर होती रही। मैं अपनी योजना में कोई बदलाव करने की मूंड में नहीं था। इसलिए मैंने भी एक ब्रह्मास्त्र छोड़ दिया। "अब इसमें कोई बदलाव नहीं हो सकता" कह सबको एक बार में ही ढेर कर दिया। अच्छा तो नहीं लगा सबको मना करके। शायद अकेले यात्रा करने का लालच फिर से हावी हो गया। दोपहर होते-होते साफ़ हो गया कि अब ये यात्रा मुझे अकेले ही करनी है। मैं खुश था और परेशान भी। दोनों का कारण एक ही था मेरी पहली "एकल यात्रा"। मैं ऐसी ही यात्रा करना चाहता था इसलिए खुश था और अकेले, क्या कर पाऊंगा ? क्या यात्रा में अकेले का मन लगेगा ? ये सोचकर परेशान भी था।
इस यात्रा के लिए मैंने पहले से कोई टिकट नहीं कराया। उसकी वजह थी कि मैं अकेले यात्रा के साथ-साथ, इस बार कम-से-कम बजट की यात्रा करना चाहता था। पैसंजर ट्रेन का नंबर 54471 जो पुरानी दिल्ली से शाम 5:35 पर रवाना होती है और ऋषिकेश सुबह 5:35 बजे वहां पहुँचती है। यही ट्रेन ऋषिकेश से गाड़ी न. 54472 बनकर पुनः पुरानी दिल्ली के लिए सुबह 6:45 पर चलती है जो शाम 4:57 बजे दिल्ली पहुँचती है। इसलिए शाम 06:30 बजे ग़ाज़ियाबाद स्टेशन से ऋषिकेश जाने वाली एकमात्र पैसंजर ट्रेन में सवार हो गया। यह ट्रेन सुबह 5:35 बजे ऋषिकेश पहुँचा देगी। पुरानी दिल्ली और ऋषिकेश को मिलाकर इस रूट पर कुल 45 स्टेशन पड़ते है। सभी स्टशनों पर ही यह रूकती है। वैसे यदि मैं एक्सप्रेस से जाता तो आधी रात को ही पहुँच जाता। और जल्दी जाकर किसी होटल में ही सोना पड़ता। और जब सोना ही है तो ट्रेन कोनसा बुरी है नींद लेने के लिए। पर मेरा अनुमान गलत निकला। ट्रेन में बैठने की सीट तो आराम से मिल गयी। लेकिन आराम नहीं मिला। और मुझे नींद आराम में ही आती है। इसलिए रात जागते हुए ही बितायी। पर मैं फिर भी बहुत खुश था अपनी इस यात्रा को लेकर। तक़रीबन 10 बजे के आस पास भूख लगने लगी। चूँकि ये पैसंजर ट्रेन है और लगभग सभी लोग जगे हुए थे। और एक-दूसरे का मुँह देख-देख टाइम काट रहे थे। ऐसे माहौल में खाना खाने का मन नहीं हुआ। फिर कुछ देर बाद, जब भूख आपे से बाहर होने लगी तो मेरी शर्म भी आपे से बाहर हो गयी। सारी शर्म त्याग, मैं अपना टिफिन खोल खाना खाने लगा। जहाँ तक मेरी नज़र जा रही थी, अधिकांश लोगों की नज़रे, मुझ अवला नर पर ही थी। सब मुझे ही देख रहे है ये जानते हुए भी अब मुझमें शर्म बिलकुल नहीं थी। बल्कि इसके विपरीत मैं पहले से भी ज्यादा खुश था और बिना रियेक्ट किये खाना खा रहा था। साथ-साथ मुझे ये भी एहसास हुआ कि यदि व्यक्ति अपने मन की हिचकिचाहट को खत्म कर दे तो खुद को कितना हल्का महसूस करता है। कुछ बातों का तो हम बेवजह ही अपने ऊपर प्रेशर बना लेते है। जैसे मैंने बना रखा था कि सब मुझे देखंगे खाते हुए.... । ये मेरी बेवजह की ही तो हिचकिचाहट थी जो मुझे आजाद रहने से रोक रही थी। लेकिन मैंने यह ज्यादा देर तक चलने नहीं दिया जिससे मेरी आजादी छीनने से बच गयी। मुझे देख एक मानस जो मेरे सामने वाली सीट पर बैठा था को भी हिम्मत मिली। समय की और बर्बादी न करते हुए उसने भी अपना टिफिन खोला और खाने लगा। पर फिर भी हिचकिचा रहा था। तभी तो सभी से छिप-छिपके खा रहा था मानो खाना ना खा रहा हो बल्कि कुछ चुरा रहा हो। ट्रेन का सफर इसलिए ही मजेदार होता है। अपने चारों ओर बैठे लोगों की गतिविधियों पर ध्यान रहता है। ऐसे ही सफर और समय आसानी से कटता चला जाता है।
हरिद्वार पहुँचते-पहुँचते रोशनी होने लगी। अब तक नींद भी बहुत तेज आने लगी। हरिद्वार आते ही ट्रेन लगभग सारी खाली हो गयी। यहाँ स्टेशन पर ये तक़रीबन 2 घंटे रूकने के बाद आगे जाती है। पर आज पहले से थोड़ा लेट थी इसलिए हरिद्वार स्टेशन पर ये मात्र 1 घंटा ही रूकी। सीट खाली होते ही मैं तुरंत लम्बी वाली सीट पर लेट गया।1 घंटा आराम से सो गया। ट्रेन के हरिद्वार स्टेशन छोड़ते ही मेरी नींद टूट गयी। बाहर के नज़ारे लेते हुए ट्रेन 6 बजे ऋषिकेश स्टेशन पर पहुँच गयी। स्टेशन का माहौल बहुत ही खुशनुमा लग रहा था। ठंडी हवा ऐसे लग रही थी मानो मुझे छूने का बहाना तलाश रही हो। सामने की ओर पहाड़ों की श्रखला दिखाई दे रही थी। उन्ही की ओट लिए सूरज अपना कार्य कर रहा था। अकेलेपन की एक अलग सी सुगंध मेरे चोरों ओर फैली थी। स्टेशन पर उतर कुछ फोटो इस अनोखी खूबसूरती के हवाले किये। यहाँ मुझे इतना अच्छा लग रहा था कि मैं स्टेशन से बाहर जाने के बाद भी 2 बार फिर से वापस स्टेशन लौट के आया। कुछ पल और यहाँ बिताये।
और इस तरह मात्र 70 रुपए में, मैं घर से ऋषिकेश पहुँच गया।
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रात्रि 1 बजे, ट्रेन के भीतर से |
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हरिद्वार-ऋषिकेश के बीच |
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हरिद्वार-ऋषिकेश के बीच |
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हरिद्वार-ऋषिकेश के बीच |
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ऋषिकेश रेलवे स्टेशन |
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ऋषिकेश रेलवे स्टेशन और इसी पैसेंजर ट्रेन से मैं यहाँ आया हूँ। |
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ऋषिकेश रेलवे स्टेशन के पैदल पार करने वाले पुल से |
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जाते-जाते एक और फोटो ऋषिकेश रेलवे स्टेशन का |
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सबूत मेरे यहाँ होने का |
इस यात्रा का अगला भाग पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करे......
इस यात्रा के सभी भाग आप यहाँ से भी पढ़ सकते है :-
1. मेरी पहली एकल यात्रा: ऋषिकेश - My First Solo Travel to Rishikesh
2. ऋषिकेश: गंगा, योग और आयुर्वेद का अनूठा संगम - Unique Confluence of Ganga, Yoga and Ayurveda
3. श्री नीलकंठ महादेव मंदिर, पौड़ी गढ़वाल - Shree Neelkanth Mahadev Temple, Pauri Garhwal
गौरव भाई एकल यात्रा का रोमांच कुछ अलग ही होता है, आपकी तरह मैंने भी कुछ महीने पहले एकल यात्रा का अनुभव लिया। वैसे आपके ये पोस्ट मेरे बहुत काम आएगी, क्योकि कुछ महीने बाद मैं भी नीलकंठ की योजना बना रहा हूँ।
ReplyDeleteहर हर महादेव
बिलकुल सिन्हा जी, सही कहाँ आपने। मेरे लिए तो एकल यात्रा बहुत ही रोचक रही। ... जरूर जाना दर्शन को बहुत ही अच्छी जगह है। ....
Deleteहर हर महादेव
bahut acha likhe rahe hai aap, likhte rahiye aage badhte rahiye
ReplyDeleteहौसला अफजाई के लिए शुक्रिया सिन्हा जी...
Deleteबेहतरीन।अागे का सफरनामा जल्द लिखें।तस्वीरें खूबसूरत हैं।
ReplyDeleteजी जरूर आगे का भाग जल्द पोस्ट करूँगा। हौसला अफजाई के लिए धन्यवाद आपका...
Deleteतस्वीरों के साथ बहुत सुन्दर प्रस्तुति और आभार !
ReplyDeleteधन्यवाद संजय जी!
Deleteगौरव भाई, सुंदर लेख | मैने भी 2 बार इसी ट्रेन से गजियाबाद से ऋषिकेश तक सफ़र किया है | पुरानी यादें ताजा हो गयी | लिखते रहिये |
ReplyDeleteशुक्रिया नितिन जी।
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बहुत अच्छी जानकारी! मैं वास्तव में इस लेख को बहुत ही रोचक और जानकारीपूर्ण पसंद करता हूं, आपके अनुभव को साझा करने के लिए धन्यवाद।
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