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दिनांक - 09 मार्च 2017 , दिन-गुरुवार
हम 10:30 बजे कालका स्टेशन पर उतरे। शिमला जाने वाली ट्रेन चलने को तैयार थी। यह हमारे ही वहाँ पहुँचने का इंतजार कर रही थी। सभी कोच के गेट पर टी.टी. कम देशी आदमी खड़े थे। जो फटा-फट सभी के टिकट चेक कर रहे थे। देशी इसलिए क्योंकि इन्होंने वर्दी नहीं पहन रखी थी। ये हमारी-तुम्हारी तरह जीन्स-शर्ट में थे। वो जल्द से जल्द इसको कालका से रवाना करना चाहते थे। क्योंकि यह हावड़ा ट्रेन की वजह से पहले ही 5 घंटे लेट हो चुकी थी। वे इसे और लेट नहीं करना चाहते थे। यहाँ एक ट्रेन लेट होने का मतलब है कि उसके पीछे से चलने वाली सभी ट्रेन लेट होना। और जितनी भी टॉय ट्रेन कालका से शिमला जाती है वही सब शाम को वापस शिमला से कालका आती भी है। इसलिए एक ट्रेन लेट हो गयी तो उस दिन की फिर
सभी ट्रेने लेट होनी तय है।
सभी ट्रेने लेट होनी तय है।
इस रूट पर 5 ट्रेने चलती है। कालका-शिमला पैसेंजर, शिवालिक डिलक्स एक्सप्रेस, कालका-शिमला एक्सप्रेस, हिमालयन क्वीन और रेल मोटर। इनके बारे में बाद में विस्तार से लिखूंगा। हमारी बुकिंग शिवालिक डिलक्स एक्सप्रेस में थी। इसकी सीट कुर्सी की तरह एकल होती है। जिसे चेयर कार बोलते है। इसे इस रूट की सबसे शाही रेल भी बोल सकते है। इसलिए नहीं क्योंकि इसमें हमने सफर किया। बल्कि इसलिए ये कालका से चलकर सीधा शिमला ही रूकती है। और इसमें नाश्ता और लंच भी टिकट के साथ ही है। पर टिकट सस्ता नहीं है इसका। 480 रुपए का एक टिकट, यानी हमारे शिवालिक डिलक्स एक्सप्रेस में सवार होने के 960 रुपए लगे। जो बहुत ज्यादा है।
डिब्बे में पहुँचते ही सीट देखी तो हमारी दोनों सीट अलग-अलग थी। लेकिन फिर यह सोचा कि जो कोई भी हमारे बराबर में आएगा उससे निवेदन कर लेंगे सीट बदलने के लिए। कुछ देर बाद ही 2 हट्टे-खट्टे विदेशी आये। दोनों लड़के ही थे और देखने में एक 30 और दूसरा 40 साल का लग रहा था। मैं कुछ कह पाता इससे पहले ही टी.टी. कम देशी आदमी ने आकर मुझसे बोला सर आप दोनों एक साथ बैठ जायेंगे क्या? मैंने सोचा इसी के इंतज़ार में तो अभी तक हमने अपनी सीट ग्रहण नहीं की। मैंने हाँ कर दी और अब हम दोनों भी एक साथ बैठ गए और वो दोनों विदेशी भी। मात्र 10 मिनट में ही रेल कालका स्टेशन से चल दी। और हाँ एक बात और बता दूँ कि हमने आज सुबह से मात्र एक प्लेट छोले-कुलचे ही खाये थे। और कुछ भी नहीं खाया। बाहर पैसे क्यों उड़ाना जब रेल में नाश्ता और खाना दोनों का प्रबंध हो। इसी विचार के साथ हम आज आगे बढ़ते गए।
कालका स्टेशन से निकलते ही वही आदमी हमारे डिब्बे में बैठ गया जिसने हमारे टिकट देखे थे। सभी डिब्बों में एक-एक आदमी मौजूद था जो नाश्ता और लंच देने के लिए रहता है। ट्रेन के डिब्बे में खाली जगह के नाम पर सिर्फ इतनी जगह थी कि बस उस डिब्बे में बैठे लोगो का नाश्ता जो की ब्रेड रखने वाली क्रेट में था आ सके और एक मेज उस आदमी के बैठने के लिए। बस बाकी एक टॉयलेट था। कम से कम जगह में इसे चलाया जा सके इसलिए इन ट्रेनों की चौड़ाई बहुत कम होती है। क्योंकि जितनी ज्यादा इनकी चौड़ाई होगी उतनी ही ज्यादा जगह घेरने की वजह से पहाड़ों को भी तोड़ना पड़ेगा साथ ही मेहनत और लागत भी ज्यादा आती। इसलिए इनकी चौड़ाई कम से कम रखने की कोशिश की गयी है। इनकी चौड़ाई कम है इसका पता यहाँ बिछी पटरी से ही लग जाता है। यहाँ के ट्रैक की चौड़ाई मात्र ढाई फुट है जो सामान्य ट्रैक से तकरीबन 2 फुट कम है। यह कोई कहने वाली बात नहीं फिर भी कह देता हूँ कि इसकी शुरुआत भी अंग्रेजों ने ही की थी।
शिवालिक-एक्सेप्रेस्स का अंदरूनी दृश्य |
शिवालिक-एक्सेप्रेस्स का अंदरूनी दृश्य और जो ये बायीं ओर खाली सीट दिख रही है। यह मेरी है। |
ट्रेन चलने की 5 मिनट के अंदर नाश्ता देना शुरू हो गया चूँकि हमारी सीट उस सामान रखने वाली सीट के सबसे पास थी तो शुरुआत हम ही से हुई। भूख बहुत जोर से लग रही थी। उसके ट्रे उठाते ही मुँह में पानी आने लगा। नाश्ते से कुछ तो आराम मिलेगा ही। हमारी दोनों सीट आमने-सामने थी और बीच में प्लेट रखने के लिए एक स्टैण्ड लगा हुआ था। उसने स्टैण्ड पर गर्म पानी की प्लास्टिक की केतली, 2 कप, चीनी, दूध और बिस्कुट के 4 छोटे पैकेट रख दिए। ये नाम के 4 पैकेट थे क्योंकि 1 पैकेट में मात्र 2 ही बिस्कुट थे। यानी मैं कह सकता हूँ कि चाय के साथ हमे पूरे 8 बिस्कुट दिए गए। बिस्कुट 8 और हम 3, किस काम के थे ये, यही सोच रहा था कि बेटे ने अपना आगे का काम बिना किसी इंतज़ार के करना शुरू कर दिया। मैंने भी चाय बनाई वैसे चाय क्या सिर्फ गर्म पानी था। चाय तो हमारे यहाँ होती है दूध में चाय पत्ती, अदरक, इलायची जैसे दो चार आइटम डालो और उसे देर तक बनने को छोड़ दो। फिर देखो चाय भी अमृत की तरह लगती है। पर फ़िलहाल यही की इस चाय से गुजरा करना था सो कर लिया।
चाय के साथ-साथ अब बाहर के नाज़ारो का लुफ्त भी तो उठाना था। तो देरी किस बात की। पहाड़ों के नज़ारे तो सोचते ही सामने आकर नाचने लगे। अब तो कभी हाथों में स्टाइल के साथ चाय का कप आता जिसमे से एक चुसकी लेकर फिर से रख देता और तो कभी कैमरे की कमान संभालता। एक से बढ़कर एक नजारे हमारे सामने थे। जिसे देख ट्रेन में बैठे सभी लोग चौक रहे थे। कोई "वाओ" कहता तो कोई "बाप-रे-बाप" कह कर इस सुंदरता को अपने-अपने तरीके से सम्बोधित कर रहा था।
टॉय ट्रेन अपनी गंभीरता से चलती रही और हम अपनी मस्ती में। बीच-बीच में ट्रेन छोटी-बड़ी सुरंगों में निकल रही थी हमारे डिब्बे की लाइट ख़राब थी और जैसे ही सुरंग में ट्रेन पहुँचती वैसे ही हमारे डिब्बे में घुप अँधेरा हो जाता। उस समय कुछ भी देख पाना नामुमकिन रहता। अब तक वहाँ उपस्थित सभी छोटे बच्चों को यह एक नया खेल मिल चुका था। अपने इस कालका-शिमला रूट पर यह ट्रेने 96 किलोमीटर की दूरी तय करती है। इस बीच ये 102 छोटी-बड़ी सुरंगों से निकलकर अपनी राह तय करती है। इस रूट पर 800 से भी ज्यादा पुल है जिस पर से ये ट्रेने गुजरती है। कालका और शिमला को मिलाकर इस रूट पर टोटल 18 स्टेशन है। यह सफर पूरा करने में तक़रीबन 5 से 6 घंटे का समय लगता है। कालका शिमला रेलवे अम्बाला डिवीज़न के अंतर्गत आती है।
सामने की ओर दिखाई देती एक सुरंग |
चाय मिले काफी समय हो गया था अब खाने के इंतज़ार में बैठे थे। उस लड़के का नाम तो नहीं पता, चलो उसका राजू नाम रख देते है। तो राजू ने सभी से पूछना शुरू किया कि "सर आप वेज लेंगे या नॉनवेज ?" हमने तो वेज बोल दिया और बराबर में बैठे दोनों विदेशियों ने नॉनवेज बोला। ऐसे ही सभी से पूछकर वो एक पेपर पर लिखता रहा और फिर अपने बन्दे को फ़ोन किया की इतनी प्लेट वेज की तैयार कर दो और इतनी प्लेट नॉनवेज की। जिसे राजू ने फ़ोन किया वो बड़ोग स्टेशन पर था। जो कालका से 43 किलोमीटर की दूरी पर है। यानी लगभग आधा सफर ख़त्म होने पर ही खाना कही नसीब होगा। और ये ट्रेन कही रूकती भी नहीं कि किसी स्टेशन पर से खुद ही कुछ ले कर खा लिया जाये। अब बस बड़ोग आने का इंतज़ार था। धीरे-धीरे बड़ोग भी आ गया। तसल्ली हुई की अब तो पेट पूजा होगी। यहाँ ट्रेन हमारा खाना लेने को रुकी। समय का फायदा उठाते हुए सभी लोग स्टेशन पर आ गए और फोटो लेने लगे। कुछ फोटो मेने भी लिए और फिर से चलने को हॉर्न बज गया।
राजू ने खाना देना शुरू किया। पहला नंबर हमारा ही था। पर ये क्या खाना देख बड़ा गुस्सा आया। खाने के नाम पर 2 ब्रेड, एक छोटा मक्ख़न, एक पैकेट सॉस, दो वेज आलू की पकौड़ी और फ्रुटी। इतने से खाने में किसका भला होगा। राजू पूछ तो ऐसे रहा था वेज और नॉनवेज की जैसे कोई खास भोज तैयार करा रहा हो। वेज और नॉनवेज में बस इतना फर्क था कि जो वे दो पकौड़ी थी वो वेज में आलू की और नॉनवेज में मास की थी। भूख थी खा तो लिया पर मैं खुद को रेलवे द्वारा ठगा हुआ महसूस कर रहा था। टिकट तो 500 का और खाना मात्र 15 रुपए का। ये तो बहुत नाइंसाफी है। किसी ने कुछ नहीं कहा इसलिए मैं भी चुप रहा।
बड़ोग स्टेशन पर तेल या तेल डालते हुए। |
यही ऊपर राजू वेज और नॉनवेज खाना लेने गया था। |
बड़ोग स्टेशन |
बड़ोग स्टेशन |
बड़ोग स्टेशन |
बड़ोग से अगला स्टेशन पर सोलन का वैसे तो यहाँ यह ट्रेन नहीं रूकती पर शिमला से आने वाली ट्रेन को पास कराने के लिए इसे थोड़ी देर यहाँ रोका गया। जैसा भी था। ट्रेन सोलन से चली और मैंने अब 2 घंटे की नींद खींच दी। होश आया तो शोगी या तारादेवी मंदिर के आस पास कही हम पहुँच गए थे। अब सुसु भी आ रहा था। जैसे ही उठा तो पता लगा की ये ट्रेन जितनी छोटी है उतनी खोटी भी। यह इतनी हिलती-ढुलती है कि कोई भी बिना किसी सहारे के खड़ा नहीं रह सकता। मैं तो जैसे-तैसे अपना काम निपटा आया। बैठने की इच्छा नहीं हुई इसलिए कुछ देर राजू की सीट के पास खड़ा हो गया। इसी बीच राजू भी अपनी कमाई के जरिये खोजने लगा। मुझसे पूछने लगा सर शिमला कितने दिन रुकोगे, कहाँ-कहाँ जाओगे जैसे सवाल करने लगा। और फिर गाड़ी की कहने लगा कि मेरे जानने वाला है मैं उसको आपका नंबर दे देता हूँ। वो आपको सब जगह घूमा देगा। मना करने पर भी उसने मुझे उसका नंबर लिख कर दे दिया। और मुझसे मेरा नंबर मांगने लगा। मैंने उससे साफ़ मना कर दिया और उससे अपने पहले दिन के होटल का पता पूछ लिया।
इतने हमारी ट्रेन समर हिल स्टेशन तक पहुंच गयी। पर रुकी नहीं चलती रही। यहाँ कुछ ताज़ी पड़ी हुई बर्फ दिखाई दी तो मन फिर से चहक उठा। मुझे खुश हुए देख राजू बोला सर गेट खोल दूँ बाहर का मौसम देखने के लिए। मैंने मना कर दिया क्योंकि यहाँ अब ठंड बहुत थी। और मौसम का जायजा ट्रेन से उतरकर ले लेंगे। हमारी आज की मंजिल का आखिरी स्टेशन आ गया "शिमला"।
4 बजे के आसपास हम स्टेशन पर उतरे और उतरते ही पिंडलीयों ने अपना काम करना शुरू कर दिया। वही काम जो ऐसे समय पर ये अक्सर करती है। नहीं समझे मतलब "कांपना" शुरू कर दिया। ठंडी हवा पूरा कहर भरपा रही थी। स्टेशन के फोटो लिए और बाहर निकल आये। बाहर आते ही दलालो ने घेरना शुरू कर दिया। कोई होटल को पूछता तो कोई गाड़ी को। पर मैं रुका नहीं चलता रहा। सारा सामान मुझ पर ही लधा हुआ था। और नीतू ने बेटे को ले रखा था। किसी की बात को बिना तवज्जो दिए हम आगे चलते गए। रोड पर आते ही बारिश शुरू हो गयी। शुक्र था घर से हम छाता लेकर आये थे। कम से कम बच्चे को तो बारिश से बचा ही लेंगे। पूछते हुए आगे चढाई की ओर बढ़ते गए। हमारा आज का ठिकाना ए.जी.चौक पर था। कुछ मिनट में बारिश बंद हो गयी। सर्दी तेज हवा के कारण इतनी थी कि कुछ ही देर में मेरे हाथ सुन हो गए। और नाक तो एक दम लाल हो गयी। पीछे से आते हुए एक लड़के से ड़लझील होटल का पता पूछा तो वो तो चिपक ही गया।
"दिखाओ सामान मैं लेकर चलता हूँ। 50 रुपए दे देना।"
"किस बात की 50 रुपए भाई"
"तुम्हारा इतना भारी सामान है वो लेकर चलूँगा।"
"पर भई तेरे से सामान लेकर चलने को कह कौन कह रहा है ? तू बस ये बता दे किस तरफ जाना है।"
" चलो 30 रुपए दे देना बोनी का टाइम है।"
"नहीं"
"30 रुपए कोई ज्यादा नहीं है। सामान भी ले चलूँगा और साथ में पता भी बताऊंगा।"
"वहा क्या आदमी है। जब सामान लेकर चलेगा तो होटल ही तो जायेगा। रास्ता तो खुद-ब-खुद पता लग जायेगा। उसमे तू क्या करेगा जो उसकी फीस माफ़ कर रहा है।" मैंने हस्ते हुए उससे कहा।
"बताना हो तो बता एड्रेस वरना रहने दे। हम खुद ढूंढ लेंगे।" बेवजह पैसे क्यों देने किसी को ?
वो भी पूरा ढीठ था। बिना एड्रेस बताये वहां से चला गया। कोई बात नहीं लोगो की कमी कोई है यहाँ किसी और से पता चल ही जायेगा। वैसे भी उसकी फीस से इतना तो पता चल गया था मुझे कि हम होटल से ज्यादा दूर नहीं है तभी तो बंदा 30 रुपए में ले जाने को तैयार था। दूर होता तो 100 रुपए से कम तो चलने को राजी भी नहीं होता। वही बायीं ओर बराबर में डाकघर था और दायी ओर एक सरकारी 2 या 3 मंज़िला इमारत। वही मेरे पीछे से आ रहे दो लड़के जो देखने में शिमला में पढ़ने वाले विद्यार्थी लग रहे थे उनसे मैंने होटल का पता पूछा। उनमे से एक बोला भैया आप पहुँच तो गए ये रहा 10 कदम की दूरी पर। मुझे पता तो था कि हम होटल के पास ही है पर इतनी पास यह जानकार अच्छा लगा। हम अगले ही पल होटल के रिसेप्शन पर थे और बाहर फिर से बारिश शुरू हो गयी। होटल के रिसेप्शन पर खड़े लड़के ने अपनी औपचारिकता पूरी की और दूसरे लड़के को बुलाया जो हमे हमारे कमरे तक छोड़ कर आया।
कमरा देख दिल खुश हो गया। बहुत ही शानदार कमरा था और खिड़की से बाहर दूर तक की पहाड़ी दिखाई दे रही थी। और क्या चाहिए एक कमरे में इसे ज्यादा। अब मन था चाय पीने का। तो 2 चाय और बेटे के लिए एक गिलास दूध लाने को बोल दिया। ठंड का प्रकोप इतना था कि कमरे में भी ऐसे अलग रहा था जैसे कही बर्फ पर खड़ा हूँ। बैग खोला तो पाया कि लोवर तो लाना भूल गया। इतनी जरूरी चीज मैं भूल कैसे गया। अब कैसे आराम मिलेगा। इससे अच्छा होता मैं घर से ही लोवर पहन के चलता। खैर झेलेंगे और क्या कर सकता हूँ इस समय। बाथरूम में गर्म पानी में हाथ-मुँह धो कर मैं कम्बल में घुस गया। इतने में चाय भी आ गयी। चाय पीकर मजा आ गया। ऐसी सर्दी में ही चाय की कीमत का पता चलता है। समय 5:30 का हो गया था और थकान भी हो रही थी। पिछले 20 घंटो से सफर में थे। मैं तो ठीक से सो भी नहीं पाया। इसलिए मन बना कि आज आराम करते है और कल से घूमेंगे शिमला।
आज हुआ भी वोही जिसका मुझे डर था। जहाँ हमे सुबह 10 बजे शिमला पहुँचना था वहाँ हम पहुंचे 4 बजे। जो आज का दिन शिमला देखने में बिताने की योजना थी वो आज धरी की धरी रह गयी। और आज को पूरा दिन सफर में ही निकल गया। दिन तो काफी है अपने पास कोई नहीं कल से शुरू करेंगे आगे का सफर। थोड़ी देर टीवी देखा पर क्या देखा याद नहीं। फिर सर्दी में बाहर जाने का मन नहीं हुआ तो खाना कमरे ही मंगा लिया। खाने में शाही पनीर, रोटी, सलाद और डुग्गु (बेटे को प्यार से घर में यही कहते है।) के लिए दूध। खाना ज्यादा खास नहीं था। खाना खाया और सो गए।
ये जनाब मेरा फोटो ले रहे है और मैं इनका |
सोलन स्टेशन |
शिमला स्टेशन से लिया फोटो |
शिमला स्टेशन से |
होटल के कमरे से दिखाई देता बाहर का दृश्य |
होटल के कमरे से दिखाई देता बाहर का दृश्य |
शिमला यात्रा के सभी भाग (आप यहाँ से भी शिमला यात्रा के सभी भाग पढ़ सकते है।) -
3.कालका-शिमला टॉय ट्रेन का सफर- Kalka-Shimla Toy Train Ka Safar
4. जाखू मंदिर, शिमला - Jakhu Mandir, Shimla
5. मैं और हसीन वादियां शिमला की - Main Or Haseen Vadiyan Shimla Ki
6. यात्रा का दूसरा पहलू - Yatra Ka Dusra Pahalu
7. भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला - Indian Institute Of Advanced Study, Shimla
8. हिमाचल राज्य संग्रहालय, शिमला - Himachal State Museum, Shimla4. जाखू मंदिर, शिमला - Jakhu Mandir, Shimla
5. मैं और हसीन वादियां शिमला की - Main Or Haseen Vadiyan Shimla Ki
6. यात्रा का दूसरा पहलू - Yatra Ka Dusra Pahalu
7. भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला - Indian Institute Of Advanced Study, Shimla
bahut sundar ullakh Toy train ke safar ka ..
ReplyDeleteशुक्रिया..
DeleteBahut khoob
ReplyDeleteBahut khoob
ReplyDeleteधन्यवाद विपिन जी
DeleteApki agli post ka intzaar rahega Gaurav ji
ReplyDeleteबिलकुल इस यात्रा की अगली कड़ी जल्द ही पोस्ट होगी।
Deleteबहुत खूब संस्मरण
ReplyDeleteजी शुक्रिया सर... आगे भी मेरा मार्गदर्शन करते रहिएगा।
Deleteबढिया यात्रा, टोय ट्रेन में बैठ कर मजा आता है ।
ReplyDeleteधन्यवाद .. जी बिलकुल टॉय ट्रेन का सफर, शिमला यात्रा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जो बहुत ही आनंदमय है
DeletePathankot se Kangra aur baijnath se wapas pathankot tak toy train me maine bhi safar kiya hai par kalka shimla toy tran me safar karne ka mera bhi man hai aapki ye poset padhkar lagta hai bahut jaldi chale jaye
ReplyDeleteबिलकुल टॉय ट्रेन का सफर है ही कुछ ऐसा जो अपनी ओर आकर्षित करता है ...आशा करता हूँ कि जल्द ही इस यात्रा का सुख आपको मिले
Deletelo jee aaj aapke is post ko phir se padhne ka man kiya aur padh liya, jo aap karna chahte the seat ki adla-badli wo kaam TT ne kar diya aapke liye to bahut aasani ho gayi
ReplyDeleteदोबारा आने के लिए धन्यवाद आपका ...जी कभी-कभी बिना खुद कुछ किये भी काम बन जाते है।
Deleteबेहद रोचक यात्रा संस्मरण शानदार फोटू के साथ
ReplyDeleteआपको यह लेख अच्छा लगा, यह बात मुझे और अच्छा लिखने को प्रेरित करेगी। अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए दिल से धन्यवाद आपका।
Deleteबहुत कम ब्लॉग हैं जिन्हें पूरा पढता हूँ लेकिन आपके राइटिंग ने हाथ-पैर बांध दिये और पूरा पढ़ने पर विवश कर दिया । लय में लिखते हो और अच्छा लिखते हो । सम्भव हो सके तो फोटो का साइज़ बड़ा करना । शुभकामनाएं
ReplyDeleteहौसला अफजाई के लिए धन्यवाद रोहित कल्याणा जी
Deletebeautiful write up and pics of toy train are superb....
ReplyDeletethanks Pratik Ji...
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