दिनांक- 10 मार्च 2017 , दिन- शुक्रवार
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"तुझको बेहतर बनाने की कोशिश में
तुझे ही वक़्त नहीं दे पा रहे हम
माफ़ करना ऐ ज़िंदगी
तुझे ही नहीं जी पा रहे हम।"
7. भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला - Indian Institute Of Advanced Study, Shimla
8. हिमाचल राज्य संग्रहालय, शिमला - Himachal State Museum, Shimla
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अगले दिन सुबह 06:30 बजे नींद खुल गयी। पर्दा हटा खिड़की से बाहर का मौसम देखा तो पाया की रात को बर्फ गिरी थी जो अब पेड़ो और अन्य जगहों पर साफ़ दिखाई दे रही थी। एक-दो फोटो यही से लिए गए। कम्बल छोड़ते ही ठंड लगने लगी। मन में ख्याल आया कि इतनी सर्दी में नहाकर मरना नहीं। नहाने के लिए पूरी ज़िंदगी पड़ी है.....। फिर किसी और दिन नहा लूंगा.....। यही ठंड में बड़बड़ाते हुए ब्रश करने चला गया। लेकिन पानी देख मूंड नहाने का हो गया। पानी बहुत गर्म था और जितना मर्ज़ी उतना इस्तेमाल कर सकते थे। बिना देरी किये नहा लिया और जो ठंड थी अब तक वो भी नहाते ही गायब हो गयी। गर्म पानी में नहाने से शरीर के अंदर तक गर्मी पहुँच गयी जिससे सर्दी लगनी कुछ देर के लिए बंद हो गयी। एक-एक कर सभी तैयार हो गए।
यह कमरा आज दोपहर 12 बजे तक हमारे पास था। पर दिक्कत यह थी कि अभी हम घूमने निकलेंगे और क्या पता 12 बजे तक कहाँ पर हो। वापस आ भी पाए या नहीं। तो अब सामान का क्या करे ? इतना सारा सामान लेकर घूमा तो जा नहीं सकता। पहले सोचा कमरा अच्छा है। इसे ही आज की रात के लये भी बुक कर लेता हूँ। इससे कमरा आज दोपहर के जगह आने वाली कल दोपहर 12 बजे तक अपना हो जायेगा।जिससे सामान रखने की समस्या भी ख़त्म हो जाएँगी। सामान यही रख बेफिक्री से कम से कम आज तो घूम ही सकते है। कल की कल देखेंगे। और शाम को दूसरा कमरा खोजने के काम से भी बच जायेंगे। इस होटल के ऑनलाइन बुक करते समय मैंने 823/- रुपए (वैसे तो यह ज्यादा का था पर कुछ छूट थी मेरी आई.डी पर) दिए थे। आज फिर ऑनलाइन ही इस कमरे के रेट देखें तो आज का यह 1350/- रुपए दिखा रहा था। जो मुझे ज्यादा ही लगा। फिर सोचा शायद ऑनलाइन इसका रेट ज्यादा हो, जैसे आमतौर पर हम लोगों की धारणा होती है कि ऑनलाइन सिर्फ ठगी ही होती है। क्योंकि ये होटल बुक करने वाली साइट कमरे के रेट के साथ अपना कमीशन भी जोड़कर ग्राहकों को बताती है। इसलिए वो महंगा होता है। और ना ही हम ऑनलाइन मोलभाव कर सकते है। जो सामने दिया गया है उतने मे ले सकते हो तो ले लो वरना रहने दो। यही पॉलिसी होती है इनकी। यही मैं सोचता था। तो कम पैसो में यही कमरा मिल जाये मेरी इसी चाह में मैं होटल के मैनेजर के पास जा पहुंचा। उससे बोला कि
"यदि आज के लिए और आपका ये कमरा लेते है तो आप कितने में देंगे ?"
"सर, 2300/- रुपए में" उसने नकली मुस्कराहट के साथ कहाँ।
"क्या बात कर रहे हो। ये तो बहुत महंगा है और मैंने कल के लिए भी इतने पैसे नहीं दिए जितने तुम आज बोल रहे हो"
"हमारे कमरे इसी रेंज से शुरू होते है। कल आपने कितने में बुक किया था।" उसने पूछा।
"823/- में "
नकली मुस्कराहट के साथ वो बोला " जिस साइट से आपने बुक किया है जरूर उस पर कोई ऑफर चल रहा होगा। वरना हमारा सबसे सस्ता कमरा 2300/- का है। इससे कम कोई नहीं।"
तब तक वो भी समझ गया था कि मैं इतना महंगा तो नहीं लूंगा। इसलिए वो मुझसे बोला "आप आज के लिए दोबारा ऑनलाइन ही बुक कर दो। उससे शायद आपको सस्ता पड़ जायें।"
मैं तो पहले ही ऑनलाइन देख चुका था वहां भी तो महंगा ही था। पर किसी भी तरह से अब यहाँ अपनी दाल गलती दिखाई नहीं दे रही थी। लेकिन अब यह जानने की जिज्ञासा थी कि ये 2000/- से कम नहीं देते और ऑनलाइन 800-1500 के बीच का मूल्य है इन्ही कमरों का। तो जो ये दोनों के मूल्यों में अंतर है, इस घाटे को कौन झेल रहा है। ये होटल या ऑनलाइन बुक करने वाली कंपनी ? अपने मन में चल रहे इस सवाल को मैंने उस मैनेजर के समक्ष रखा। अब वो ही था जो कुछ बता पाए इस बारे में।
उसने बताया कि "हमारे रेट एक ही है अब यदि कंपनी ऑनलाइन कम दामों में दे रही है तो ये नफा नुकसान कंपनी का है हमारा नहीं।"
"तुमने कंपनी से भी 2 हजार में तय किया और वो उसे 800 में दे रही है। तो इनता घाटा कंपनी क्यों उठा रही। बिज़नेस करने वाले नुकसान वाला काम कैसे कर सकते है। नहीं कुछ और तरीका है बिज़नेस का या यूं कहे कोई और राज है इसमें।"
इस पर वो कुछ नहीं बता पाया और बोला "इसके बारे में तो वो ही जाने।"
ये गुत्थी तो सुलझ नहीं पायी पर जल्द ही अपने सामान रखने की गुत्थी सुलझानी पड़ेगी वरना आज का दिन भी बर्बाद हो जाएगा। उससे पूछने पर पता चला की वो हमे लॉकर की सुविधा दे सकता है और उसका कोई चार्ज भी नहीं लगेगा। बस हो गयी हमारी समस्या हल। सामान रखे जाने के बाद फिर तो घूमने में कोई परेशानी नहीं। इन बातों में थोड़ा समय लग गया। इसलिए कमरे में जाकर जल्दी से अपना सारा सामान तीनो बैगो में रख लिया। जो रास्ते में जरुरत का था जैसे डुग्गु की दूध की बोतल, छाता, मोबाइल का चार्जर वो तो सब मैंने एक पिट्ठू बैग में भर लिए साथ ले चलने को। और बाकी सारा सामान बचे हुए दोनों बैगो में भर कर बैग लॉकर में रख दिए।
मौसम यहाँ बहुत जल्दी-जल्दी करवट बदल रहा था। अभी आधा घंटा पहले जब मैं मैनेजर से बात कर रहा था तो धूप निकल रही थी और अब बादलों ने सूरज को चारों तरफ से घेर रखा था। और लग रहा था कि अब बारिश कभी भी आ सकती है। शिमला एक जाना माना पर्यटक स्थल है। ये समुद्री तल से लगभग 2400 मीटर पर उपस्थित है। यह पश्चिम के उत्तर में है। शिमला हिमाचल प्रदेश की राजधानी है। यहाँ के बारे में कहाँ जाता है कि यहाँ गर्मी ना के बराबर ही पड़ती है।
बनायीं हुई योजना के अनुसार आज शिमला में सबसे पहले जाखू मंदिर देखने को निकल गए। यदि शिमला में नकदी खत्म हो जाये तो कोई दिक्कत नहीं यहाँ जगह-जगह एटीएम मशीनों की भरमार है जो ए.जी.चौक से लेकर मॉल रोड तक बिखरी हुई है। देखने भर से पता चलता है कि यह मॉल रोड वाली जगह केवल पर्यटकों के लिए ही बनाई गयी है। एक से बढ़कर यह रेस्ट्रोरेन्ट, कॉफ़ी कैफ़े, नामी कंपनियों के शोरूम, लकड़ियों के सामान जो सजाने के काम आते है ऐसी अनेकों दुकानों का यहाँ साम्राज्य फैला हुआ है। होटल से निकलते ही बायीं ओर से काली बरी मंदिर के लिए रास्ता जा रहा है। पर इसे बाद में देखने जायेंगे यही सोचते हुए हम आगे बढ़ गए। और दायीं ओर आर्मी का मुख्यालय (हेड क्वार्टर) है। ए.जी.चौक से यह रास्ता सीधे मॉल रोड को जाता है। सुबह 9 का समय था। भूख भी लग रही थी। अधिकतर दुकानें अभी खुली नहीं थी और जो एक-दो खुल रही थी तो वो अपने काम की नहीं थी। क्योंकि इन पर एक कप चाय या कॉफी भी 50 रुपए से कम नहीं थी। नीतू ने भी इन पर चाय पीने से मना कर दिया। फिर हम आगे बढ़ते गए सस्ती चाय की तलाश में। और कुछ ही देर में एक खुली जगह पर पहुँच गए जिसे रिज कहते है। यहाँ से दूर-दूर तक के पहाड़ों का दृश्य दिखाई देता है। रिज के बायीं और रोड से हटकर टहलने और बैठने के लिए जगह बना रखी है। इस जगह का नाम दोलत सिंह पार्क है। जहाँ से इन वादियों का मजा सैलानी लेते है। इस पार्क का कुछ हिस्सा रोड़ के दायी ओर भी है।
"पार्क" इसके नाम में है पर इसमें घास, पेड़-पौधे मिलेंगे ये मत सोच लेना। इसको चारों तरफ से पक्का किया हुआ है और इसमें पत्थर बिछा हुआ है। इसी पार्क के पास दो दुकानें थी जिन पर चाय, काफी, आइसक्रीम जैसी चीज़ें थी। ये दोनों स्टॉल एक-दूसरे के आमने-सामने थी। एक रोड़ के दायी ओर तो दूसरी बायीं ओर। दायी वाली स्टॉल पर जाकर हमने दो कप चाय ली। जो चाय हमने कल होटल में पी थी उससे तो इसका स्वाद ठीक था। डुग्गु के लिए एक चिप्स ले लिया। सर्दी का तो मैं बार-बार जिक्र कर ही रहा हूँ। चाय हाथ में आते ही ठंडी हो गयी थी। चाय पीकर अपने एक-दो फोटो लिए। चाय की दुकान से दस कदम आगे दायी ओर चर्च है। एक रास्ता चर्च के सामने से होकर नीचे मॉल रोड़ की तरफ चला जाता है। एक रास्ता सड़क के बायीं और जाता है जो आगे चलकर कुफरी जाने वाली सड़क में जाकर मिल जाता है। और एक रास्ता चर्च के ठीक बराबर से ऊपर की ओर जा रहा है। यही रास्ता पैदल जाखू मंदिर जाने वालो का है। और इस रास्ते से सट कर एक पुस्तकालय भी है।
हम पैदल मंदिर जाने वाले इस मार्ग पर चलने लगे। कुछ ऊपर ही एक बोर्ड लगा हुआ था जिसमे किसी भी मानव की शारीरिक क्षमता को बखूबी दर्शा रखा है। यह व्यक्ति की उम्र और कितने समय में यह चढ़ाई पूरी की है इन दोनों के हिसाब से बतलाता है कि वह व्यक्ति कितना फिट है। इस बोर्ड का फोटो मैं नीचे दे रहा हूँ जिसे देखते ही आप सब समझ जायँगे। इसका फोटो लेकर थोड़ा सा आगे चले कि रास्ते के बायीं ओर एक बैठने की जगह बना रखी थी। इसके ऊपर बारिश और धूप से बचने के लिए छाता रूपी छत थी। इस जगह को ताका बेंच कहते है। यहाँ बैठने को बेंच रखी हुई है और ये दो मंज़िला है। यहाँ से पूरे रिज और आस-पास की जगह के बखूबी दीदार हो रहे थे। रिज की खूबसूरती को असलियत में यही से निहारा जा सकता है।इसके ठीक नीचे महात्मा गाँधी जी की प्रतिमा है। यहाँ से रिज का एक फोटो तो जरूर बनता था सो बिना किसी विचार के फटाक से ले लिया। 5 मिनट रुक यहाँ से चल दिए। मौसम को देख लग रहा था कि कभी भी बारिश आ सकती है। इसलिए मैं चाहता था कि बिना देरी किये हम मंदिर देख आये। क्या पता फिर मौसम ख़राब हो जाये और हम आगे ना जा पाए। ये सब मुझे डुग्गु के कारण सोचना पड़ रहा था। वरना मैं अकेला या दोस्तों के साथ होता फिर तो बारिश के इस सुहाने मौसम का और ज्यादा मजा लिया जाता। यहाँ से एक रास्ता बायीं ओर नीचे की ओर मीना बाजार की तरफ जा रहा है और एक रास्ता ऊपर की ओर। ऊपर कुछ दुकानें और थी। इन दुकानों को पार कर हम बिना रुके आगे चलते गए। इस रास्ते पर मंदिर जाते समय निरंतर चढ़ाई बढ़ती जाती है। मैंने कंधों पर बैग लटका रखा था और डुग्गु भी मेरी ही गोदी में था। मेरे पास ज्यादा वजन होने की वजह से मैं धीरे-धीरे पर लगातार चल रहा था। और नीतू अपनी मस्ती में गुनगुनाती चल रही थी। उसे देख थोड़ी जलन हो रही थी। बैग भी मेरे पास और बेटा भी मेरी ही गोद में, उसको किसी एक को तो लेना चाहिए.....। कैसे मनमौजी की तरह चल रही है और मैं मजदूर की तरह हाँफते हुए....। कुछ आगे चलकर नीतू को मुझ पर शायद दया आ गयी। उसने मुझसे बैग देने को बोला पर मैंने नेकी दिखाते हुए मना कर दिया। मैंने डुग्गु को लेने को बोला तो वो कुछ कह पाती, उससे पहले तो श्रीमान डुग्गु ने ही जाने से मना कर दिया। मैंने इस बात पर बहुत बार ध्यान दिया है, पता नहीं ऐसी परेशान करने की स्थिति में बेटे को मुझ पर ही क्यों इतना ज्यादा प्यार आता है ? और सब जानकर भी हमेशा मैं उस अतिरिक्त प्यार का शिकार हो जाता हूँ। अब जब साहब ने खुद ही पाला बदलने से इंकार कर दिया तो बात ही ख़त्म हो गई। हम जैसे चल रहे थे फिर वैसे ही चलने लगे।
इस रास्ते पर हमारे सिवा सिर्फ दो लोग ही हमे पैदल यात्रा करते हुए मिले। कुछ देर हम एक जगह ठहरे। अब सभी दुकानें और होटल पीछे छूट चुके थे। चारों तरफ अब शिमला के स्थानीय लोगों के घर थे। इन घरो में सभी रह रहे थे पर यहाँ शोर नाम की कोई आवाज नहीं थी। बहुत ही शांत वातावरण था। कोई इक्का-दुक्का आदमी कभी-कभार दिखाई दे जाता वरना सभी रास्ते खाली पड़े थे। शायद ठंड की वजह से सभी अपने घरों में ही थे। इसलिए ही बाहर कोई दिखाई नहीं दिया। आगे चढ़ाई शुरू की तो रात को गिरी बर्फ दिखाई देने लगी। ऐसे शांत माहौल में ये बर्फ भी शांत ही जान पड़ रही थी। कुछ फोटो यहाँ भी लिए। मौसम और बिगड़ने लगा और सर्द हवा और भी तेज हो गयी। होटल से बेटे की एक जैकेट अलग से रखकर लाये थे ताकि सर्दी ज्यादा होने पर उसे पहनाया जा सके। यहाँ से इस जैकेट की ड्यूटी भी शुरू हो गई।
रास्ते के दायी तरफ से एक रास्ता जा रहा था। जहाँ दूर तक स्थानीय लोगों के घर ही दिखाई दे रहे थे। और इसी मोड़ पर हमसे पचास गज की दूरी पर एक छोटी सी हलवाई की दुकान थी। इस पर गर्म-गर्म समोसे बन रहे थे। अभी तो इच्छा नहीं थी। नीतू ने कहा कि आते समय खायेंगे। वैसे भी ऊपर मंदिर पर 1-2 घंटे तो रुकेंगे ही। वहाँ से लौटने तक भूख लग ही जानी है। हम वहा से चल दिए। अभी चलते हुए कुछ ही दूरी तय की थी कि ये क्या बर्फ गिरने लगी... ! ये बर्फ रुई से भी हलकी लग रही थी। हम दोनों ने ही पहली बार बर्फ गिरती हुई देखी थी इसलिए हम दोनों आश्चर्य में थे और खुश भी। ये ऐसी लग रही थी मानो बर्फ ना हो सितारे हो जिन्हे इकट्ठा कर किसी ने आसमान से हमारी ओर फेंक दिए हो। तभी तो ये सितारों की तरह ही टिम-टिमा रही थी। जरा सोच कर देखो, एक सुनसान सा रास्ता, जिसे चारों तरफ से लम्बे घने पेड़ो ने घेर रखा हो, घने बादल बेसुध होकर आसमान में इधर-उधर नाच रहे हो, दूर-दूर तक कोई आदमी ना दिखाई दे, माहौल में एक खामोशी सी छाई हो, वो खामोशी ऐसी लगे जैसे सच में आज कुछ देर के लिए ये समय रुक सा गया... , जैसे हमारा दिमाग जो घोड़े से भी तेज और लगातार दौड़ता है सच में वो कुछ देर सुस्ताना चाह रहा हो.... , ये सारा संसार जैसे इसमें मेरे अलावा कोई जीवित ही ना हो...। केवल मैं इस संसार में हूँ और ये संसार सिर्फ मेरे लिए। ऐसी खामोशी को ठंडी-ठंडी हवा तोड़ने की अपनी ज़िद में मग्न हो। ऐसे में चुलबुली, चमचमाती बर्फ इस एकान्त और सुहाने मौसम में बाहें फैलाएं आपको बुलाये। तो क्या आप खुद को रोक पाओगे ? वो माहौल जो कुदरत ने सिर्फ और सिर्फ आपके लिए रचा हो, क्या आप उसको नज़रअंदाज़ कर पाओगे ? क्या प्रकृति को बिना शुक्रिया कहे आप यहाँ से आगे बढ़ पाओगे ? नहीं, मेरे से तो ये बिलकुल नहीं होगा। मैं नहीं रोक सकता खुद को। मैं नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता संसार के इतने पड़े रचयिता को जिसने मेरी आवभगत में कोई कमी न छोड़ी हो। मैं आगे नहीं बढ़ सकता प्रकृति को यूँ बिना शुक्रिया कहे। मैं नाचना चाहता था, खेलना चाहता था। मैं फिर से अपने बचपनों के उन दिनों में लोट जाना चाहता था जहाँ सिर्फ अपने दिल की सुनी जाती थी....। कुछ देर के लिए मैं सब भूल जाना चाहता था कि मैं कौन हूँ, क्या हूँ और कहाँ हूँ....। बस अपनाना चाहता था कुदरत के इस बेशकीमती उपहार को। बस महसूस करना चाहता था खूबसूरती की इस मिसाल को। प्रकृति के इस एहसास को जितना भी शब्दों में पिरोऊँ उतना कम होगा। कही पर पढ़ी चंद लाइन याद आ गयी, ये लिखी किसने है ये तो याद नहीं पर ये चंद लाइन आपको भी सोचने को मजबूर कर देंगी।
तुझे ही वक़्त नहीं दे पा रहे हम
माफ़ करना ऐ ज़िंदगी
तुझे ही नहीं जी पा रहे हम।"
यूँ ही बर्फ से खेलते हुए हम मंदिर से थोड़ी दूर पहले तक बनी टिन की छत के नीचे जा पहुंचे। यहाँ कुछ दुकानें थी पर मौसम ख़राब होने की वजह से बंद थी। मौसम ख़राब के कारण ही आज मंदिर दर्शन करने भी कोई आता नहीं दिख रहा था। टिन में कुछ आदमी आग जलाये बैठे थे। अब तक सर्दी पहले से भी ज्यादा हो गयी थी। हम भी कुछ देर के लिए आग के पास बैठ गए। यहाँ पर किनारे पर एक प्रसाद लिए आदमी बैठा था। उसने हमसे प्रसाद लेने को कहा पर मैंने मना कर दिया। सोचा आगे से लेंगे। उसने बताया भी कि आगे प्रसाद नहीं मिलेगा। लेकिन ऐसा ये लोग अपनी बिक्री करने को झूठ बोल देते है इसलिए उसकी बात मुझे झूठ लगी और नतीजन मैंने उससे प्रसाद नहीं लिया। यहाँ बंदर का आतंक बहुत है। ये मुझे पहले से ही पता था। इसलिए थोड़ा संभलकर चलने में ही अपनी भलाई थी। जैसा सोचा था पर वैसा हुआ नहीं बर्फ पड़ने की वजह से सभी बन्दर गायब थे। सभी बंदरों को बर्फ पड़ने की वजह से जंगलों में पेड़ो के नीचे शरण लेनी पड़ी। थोड़ा आगे चलकर दो तीन बन्दर मिले भी पर हम आराम से बिना उनसे नज़र मिलाये वहां से निकल गए। यदि आपका सामना किसी भी जानवर से हो जाये तो उसके वार से बचने का सबसे अच्छा तरीका है कि कभी भी उस जानवर से नजर मत मिलाओ। यदि आप नज़र मिलाते हो (लगातार घूरते या देखते रहना) उससे जानवर को खतरे का आभास होता है और अपनी सुरक्षा के लिए वो आप पर हमला कर सकता है। मगर ये बात शत प्रतिशत सही साबित हो ये तो उस जानवर के मूंड के ऊपर है। पर कारगर सिद्ध हो सकती है इसमें कोई दोराय नहीं।
जाखू मंदिर का इतिहास बहुत ही रोचक है। बताया जाता है कि जब श्री राम के भाई लक्ष्मण युद्ध के दौरान मूर्छित हो गए तो उन्हें ठीक करने के लिए संजीवनी बूटी की जरुरत थी। जिसे लेने को श्री राम भक्त हनुमान हिमालय की ओर चल दिए। हिमालय जाते समय वे इस पर्वत पर उतरे थे। ये पर्वत उनका वजन सहन ना कर सका और जिससे इस पर्वत का कुछ भाग नीचे ज़मीन में धस गया। हनुमान जी यहाँ उपस्थित ऋषि मुनि से संजीवनी बूटी के बारे में पता लगाने को उतरे थे। और यहाँ से जाते समय हनुमानजी ने ऋषि मुनि को वचन दिया था कि जब मैं संजीवनी बूटी ले कर यहाँ से वापस लोट रहा हूँगा तो आपसे मिलकर जरूर जाऊंगा। पर समय के अभाव में हनुमान जी जाते समय उनसे मिल ना सके। क्योंकि उन्होंने ऋषि मुनि को दोबारा मिलने का वचन दिया था इसलिए हनुमान जी बाद में आकर दर्शन दिए। यहाँ हनुमान जी की 108 फ़ीट की विशाल मूर्ति लगाई गयी है जो शिमला के हर कोने से दिखाई देती है। ये विशालकाय मूर्ति 2003 में लगाई गयी थी। ये मूर्ति यहाँ मुख्य आकर्षण का केंद्र है। ये भी बताया जाता है कि हनुमानजी के इस पर्वत पर उतरते समय उनके पैरों के निशान बन गए थे जिन्हे आज भी सुरक्षित रखा गया है। यह मंदिर समुद्री तल से तक़रीबन 8100 फ़ीट पर स्थित है।
डुग्गु के ठंड की वजह से हाथ सुन हो गए जिससे वो रोने लगा। वैसे उसने दस्ताने पहन रखे थे पर हवा थी ही इतनी तेज और ठंडी कि अच्छे-अच्छे की भी कपकपी छूटने लगे ये तो फिर भी छोटा बच्चा है। उसे ज्यादा रोते देख हम मंदिर के पास बनी कैंटीन में ले गए। यहाँ हीटर पर हाथ सेके तब जाकर वो चुप हुआ। डुग्गु बाहर की सर्दी से डर गया था इसलिए उसने मंदिर में जाने को मना कर दिया। उसके चक्कर में अब नीतू को भी उसी के पास रूकना पड़ा। मैं छाता लेकर बाहर बर्फ की बारिश के मजे लेने को आ गया। बर्फ पिछले आधे घंटे से पड़ रही थी इसलिए नीचे ज़मीन पर चारों ओर बर्फ ही बर्फ दिखाई दे रही थी। यहाँ के नजारे देख लग रहा था जैसे कोई फिल्म चल रही हो। अपनी ही आँखों पर विश्वास करना मुश्किल हो रहा था। बर्फ गिरने की गति भी तेज होती जा रही थी। कुछ देर मौसम का लुफ्त उठाया गया। अब मेरा मंदिर के अंदर जाने का मन नहीं हुआ तो मैंने बाहर से ही हनुमान जी के सामने सर झुका प्रणाम किया और नीचे वापस चलने के लिए नीतू को बुला लिया। नीतू ज्यादा बर्फ देख थोड़ी घबरा गयी। अब नीचे उतरने में फिसलने का डर था। नीतू ने कार से नीचे जाने की ज़िद की। कार से यहाँ आने का रास्ता दूसरा है और पैदल चलने का दूसरा। नीतू बेटे को लेकर ज्यादा चिंतित लग रही थी और उसकी ये चिंता जायज भी थी। एक कार वाला वही मिल गया उससे पूछा तो पहले उसने मुझसे कुछ दूर तक जाकर रास्ते पर कितनी बर्फ गिरी है इसका मुआयना किया और फिर मेरे पास आकर जाने से मना कर दिया। उसके मुताबिक बर्फ अच्छी-खासी जमा हो गयी है और ऐसे में कार के टायर फिसलेंगे जिससे कार खाई में भी गिर सकती है। उसकी बातों में पॉइंट था इसलिए बिना आगे कुछ बोले हमने पैदल उसी मार्ग से वापस आने का निर्णय लिया जिस मार्ग से हम ऊपर आये थे।
सारा सामान मेरे पास ही था और डुग्गु भी मेरी ही गोदी में। मैं एक हाथ से डुग्गु को पकडे हुए था और दूसरे हाथ में छाता। और नीतू बर्फ में यूँ ही भीगती चल रही थी। इस माहौल के इतना करीब मैं नहीं था जितना नीतू। उतरने की गति बढ़ाई और जल्द ही हम उस हलवाई वाली दुकान में जा पहुंचे जहाँ समोसे खाने का मन था। उस समय तो भूख नहीं थी और अब भी नहीं थी। भला हो उस दुकान वाले का उसने बेटे को अपने घर हीटर पर हाथ सेकने के लिए भेज दिया। उसका घर दुकान के ठीक पीछे था और घर वालो से संपर्क रखने की लिए उन्होंने दुकान में पीछे एक खिड़की लगा रखी थी। चाय पी पर समोसे नहीं खाये। अब मन था सबसे पहले आज के लिए होटल बुक कर लू और बेटे को कुछ देर आराम करने दू फिर दोबारा घूमने बाहर आयगे। कुछ देर बाद यहाँ से निकलकर जल्द ही हम रिज पहुँच गए। यहाँ बर्फ नहीं गिरी थी पर बारिश जरूर हुई थी।
दो चार होटल वालो से बात की तो कोई दो हजार बोलता तो कोई तीन। यहाँ होटल सस्ते भी है पर उसके लिए मॉल रोड से हटकर लेना होगा। पर मन नहीं था इसलिए ऑनलाइन चेक किया तो एक होटल (प्रेस्टीज होटल) अपने बजट में मिल रहा था जो यही मॉल रोड़ पर था। समय 2 का हो रहा था। रिज से होटल के तरफ चलते ही अचानक पीछे से बहुत तेज चिल्लाने के आवाजे आने लगी। कुछ समझ पाता इससे पहले ही यहाँ भी बर्फ गिरनी शुरू हो गयी जिसे देख सभी लोग इतने खुश हुए की शोर मचाने लगे। दुकानों से पूछते हुए होटल जल्द ही मिल गया। होटल मॉल रोड़ से तक़रीबन 50 सीढिया नीचे उतरकर था। होटल पहुंचने तक नीतू बर्फ में छीप गयी। ज्यादा समय तक बर्फ कपड़ो पर रहने की वजह से हलके से भीग गए पर कपड़ो के अंदर तक सीलन नहीं गई ये अच्छा रहा। यहाँ तो कपड़े भी नहीं बदल सकते क्योंकि हमारा सारा सामान पहले वाले होटल के लॉकर में ही रखा है जो यहाँ से 1 किलोमीटर दूर है। हाँ जूतों ने इसकी कमी पूरी की। जूते अच्छे से गीले हो गए थे। कमरे में जाते ही खाना ऑर्डर कर दिया। यहाँ के खाने ने दिल खुश कर दिया मेरा। शिमला में सबसे अच्छा खाना मुझे यही का लगा। खाना खाकर आधे घंटे आराम किया।
पहला फोटो दूसरे दिन उसी जगह का फोटो |
सुबह-सुबह |
होटल के कमरे से |
सबसे ऊपर दिखाई देती 108 फ़ीट की हनुमानजी की प्रतिमा और पेड़ो पर जमी बर्फ जिसकी वजह से ये सफ़ेद दिख रहे है। |
ए.जी.चौक से मॉल रोड को जाता रास्ता |
झंडा ऊचा रहे हमारा |
(दाये से बायीं ओर) चर्च, चर्च के बराबर से पैदल जाखू मंदिर जाने का रास्ता, पुस्तकालय और ताका बेंच |
बाप-बेटे की जोड़ी |
जानो कितने फिट हो आप |
रिज |
पीछे रात की गिरी हुई बर्फ |
बर्फ गिर रही है। |
सेल्फी |
अद्भुत |
मन मोह लेने वाला मौसम और सामने दिखाई देता जाखू मंदिर |
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शिमला यात्रा के सभी भाग (आप यहाँ से भी शिमला यात्रा के सभी भाग पढ़ सकते है। )-
1. अबकी बार शिमला यार- Abki Baar Shimla Yaar
2. लो आखिर आ ही गयी ट्रेन- Lo Aakhir Aa Hi Gayi Train
3. कालका-शिमला टॉय ट्रेन का सफर- Kalka-Shimla Toy Train Ka Safar
4. जाखू मंदिर, शिमला- Jakhoo Mandir, Shimla
5. मैं और हसीन वादियां शिमला की - Main Or Haseen Vadiyan Shimla Ki
6. यात्रा का दूसरा पहलू - Yatra Ka Dusra Pahaluशिमला यात्रा के सभी भाग (आप यहाँ से भी शिमला यात्रा के सभी भाग पढ़ सकते है। )-
1. अबकी बार शिमला यार- Abki Baar Shimla Yaar
2. लो आखिर आ ही गयी ट्रेन- Lo Aakhir Aa Hi Gayi Train
3. कालका-शिमला टॉय ट्रेन का सफर- Kalka-Shimla Toy Train Ka Safar
4. जाखू मंदिर, शिमला- Jakhoo Mandir, Shimla
5. मैं और हसीन वादियां शिमला की - Main Or Haseen Vadiyan Shimla Ki
7. भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला - Indian Institute Of Advanced Study, Shimla
8. हिमाचल राज्य संग्रहालय, शिमला - Himachal State Museum, Shimla
फोटो मस्त है
ReplyDeleteजी शुक्रिया..
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ReplyDeleteअगस्त में हम भी शिमला जाने की सोच रहे है आपकी शिमला वाली सभी पोस्ट मेरे मददगार होंगे
ReplyDeleteजी उम्मीद करता हूँ मेरी पोस्ट आपके लिए उपयोगी सिद्ध हो ....शुक्रिया आपका यहाँ आने के लिए ....
Deleteबर्फ के साथ आपके अनुभव को पढ़कर बहुत अच्छा लगा, जब आप उस एहसास को नजरअंदाज नहीं कर पायें तो हम कैसे इस पोस्ट तो कर पाएंगे । टाइम लगा लेकिन आ ही गये ।
ReplyDeleteआप जैसे प्रकृति प्रेमी ही एहसास कर सकते है इस खूबसूरती को। आभार आपका।
Deleteसफ़ेद शिमला बहुत अच्छा लग रहा है,...बढ़िया पोस्ट
ReplyDeleteधन्यवाद प्रतीक जी...
Deleteबहुत बढ़िया लेख
ReplyDeleteशुक्रिया महेश जी
Deleteअच्छा वृतांत लिखा है आपने। और आप भाग्यशाली रहे की बंदरों के आतंक से बच गए। क्योंकि यहाँ के बन्दर ब्लैकमेल करते हैं बहुत। आपका कोई सामान लेकर भाग जायेंगे। और तभी देंगे जब आप उनको चने खिला दो,,,
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