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Monday, 15 May 2017

भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला - Indian Institute Of Advanced Study, Shimla

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दिनांक- 12 मार्च 2017, दिन- रविवार 


एक नई सुबह का हम बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे। जो कमी कल रह गयी उन सबको नई सुबह के साथ जो पूरा करना है। रोज की तरह समय से आँख खुल गयी। गीजर चलाया पर आधे घंटे में भी पानी गर्म नहीं हुआ तो होटल के मैनेजर को बोला। उसने गीजर ठीक कराया तब जाके नाहने को गर्म पानी नसीब हुआ। घर में सर्दी के मौसम में चाहे मैं रोज ना नाहता हूँ.... पर यहाँ ठेठ सर्दी में जरूर रोज नहा रहा था। ये बात शायद भगवान को भी रास नहीं आयी...  तभी मौसम खुलने का नाम नहीं ले रहा। मैनेजर को कमरे के पैसे दे दिए। वही एक परिवार मिला जो आज ही शिमला आया है। वे कालका-शिमला टॉय ट्रेन से आये थे। उन्होंने बताया कि आज ट्रेन अपने सही समय पर कालका से चली है। तभी तो वो लोग 10 बजे के आसपास शिमला पहुँच गए। सबकी किस्मत हमारी जैसी थोड़ा होती है जो 10 बजे 
की जगह शाम के 4 बजे शिमला आये .... 




अपना समान होटल के लॉकर में रख दिया। होटल के पास में ही नाश्ता किया। नाश्ते में छोले-भठूरे खाये। मैं हमेशा रात को दूध पीके सोता हूँ। तब से शिमला आया हूँ रोज बिना दूध के ही सो रहा था। इसलिए बहुत मन था। सो वो भी लाने को बोल दिया। नाश्ते के दौरान एक किस्सा हुआ। जिस जगह हम खाना खा रहे थे वहा वेज और नॉन वेज दोनों तरह का खाना बनता है। हम वेज ही खाते है। बाहर जाकर ऐसी छोटी-छोटी बातों को नज़रअंदाज़ करना पड़ता है। नहीं तो कई बार भूखे रहने की भी नौबत आ जाती है। हमने भी वही किया, नज़रअंदाज़। खाते समय मेरे मुँह में अचानक कुछ पत्थर जैसा आया। निकालकर देखा तो किसी जानवर की हड्डी थी। होटल वाले पर गुस्सा तो आया पर मैंने उसको कुछ नहीं कहा। यदि मैं उसको बोलता तो जाहिर है नीतू को भी पता चल जाता। उसके बाद खाना तो छोड़ ही देगी, उसकी तो कोई बात नहीं पर जो भर-भर कर उसकी दुकान में उल्टी करती उसके बाद उल्टा हमे वहा की सफाई करनी पड जाती और उसके सारे ग्राहक जो भाग जाते वो अलग....। इसलिए नीतू के पूछने पर मैंने कंकड़ बोलकर पीछे को फेक दिया। 



आज भ्रमण को एडवांस इंस्टिट्यूट को जाना था उसके बाद संग्रहालय और शाम को 6 वाली ट्रेन से घर को निकलना था। आज आसमान बिलकुल साफ था। मौसम की तरह हमारा मन भी कल की घटना को पीछे छोड़ चुका था। फिर से उसी राह को पैदल चल दिए जिस राह पर कल भटके थे। अंबेडकर मोड़ तक तो पिछली पोस्ट में बता ही चुका हूँ। तो इस पोस्ट में यही से आगे का जिक्र कर रहा हूँ। यहाँ से तीन रास्ते जाते है जो आगे चलकर एक मोड़ पर फिर मिल जाते है। यहाँ से कल हम दायी ओर वाले रास्ते को मुड़ गए थे जो निहायती जंगल वाला रास्ता है। एक रास्ता सीधा ऊपर चढ़ाई की ओर जाता है। यही चढ़ाई वाला रास्ता आगे चलकर दो भागो में बट जाता है। इसमें से एक रास्ता सीधा फिर नीचे ढ़लान को उतर जाता है और एक रास्ता दायी ओर ऊपर को जाता है। ऊपर गए रास्ते पर ही संग्रहालय है और एक रास्ता बायीं ओर जाता है। आज हम बायीं ओर वाले रास्ते को हो लिए। इसी रास्ते पर थोड़ा आगे चलते ही बायीं ओर ऑल इंडिया रेडियो शिमला को ऑफिस आता है। ठीक से याद नहीं पर दूरर्शन केंद्र भी कही इसी मोड़ के आस पास को है। आगे का रास्ता लगभग समतल सा ही है। नाम मात्र की चढ़ाई-उचाई है। जल्द ही हम उस चौराहे पर पहुँच गए जहाँ ये तीनो रास्ते जा कर मिले हुए थे और एक (चौथा) रास्ता यहाँ से सीधा समर हिल को जाता है। इसी चोराहे के ठीक बायीं ओर एक रास्ता ऊपर को जाता है इस पर एक गेट बना रखा है जिसके दोनों तरफ कमरे बने हुए है और उन कमरों को आपस में एक पुल नुमा छत से जोड़ा गया है और इस पर लिखा है "भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान"। इसी के पास बहुत सी गाड़ियाँ खड़ी थी। दरअसल ये गाड़ियाँ संस्थान देखने वाले लोगों को ऊपर लेके जाती है। ऊपर संस्थान के पास गाड़ी को खड़ी नहीं करने देते इसलिए ये टैक्सी वाले लोगों को वही छोड़ यहाँ नीचे गाड़ी लाकर खड़ी कर लेते है। 


इस रास्ते पर सामान्य चढ़ाई थी जिसे हम आसानी से पार कर गए। हमारे अलावा दो-तीन लोग ही और थे जो पैदल आ रहे थे वरना सब गाड़ी नाम के जहाज पर चढ़कर आ रहे थे। यहाँ मॉल रोड़ के अपेक्षा भीड़ बहुत कम थी। बहुत ही कम लोग इसको देखने आते है। यहाँ की शांति मन को भा रही थी। लेकिन थोड़ी-थोड़ी देर में पीछे से शोर करती आती गाड़ी, भूकंप की तरह इस माहौल में तबाही मचा जाती। रिज से संस्थान तक की दूरी तक़रीबन तीन किलोमीटर है। यहाँ मैं पहले टिकट लेने गया। टिकट देने वाले शख्स ने मुझसे पूछा की "अंदर से देखना है या सिर्फ बाहर से?" "मतलब" 

"मतलब ये कि बाहर से देखने का टिकट 20 का है और अंदर जाकर देखने का टिकट 40  का है "
इतनी दूर आये है तो अंदर से भी देखेंगे। मैंने अंदर के 2 टिकट ले लिए।   
"भाई कैमरे का टिकट नहीं लगता क्या ?"
"नहीं "
मुझे पहले तो खुशी हुई की चलो यहाँ कैमरे का अलग से कोई टिकट नहीं है। पर मन में एक शंका भी थी कि ऐसा कैसे हो सकता है ? सरकार पैसे कमाने का कोई मौका नहीं छोड़ती फिर ये कैसे छोड़ दिया....? नहीं.. नहीं.. इसके पीछे और कोई वजह होगी। इस शंका को दूर करने के लिए मैंने टिकट देने वाले आदमी से ही पूछ लिया।
"पक्का अंदर कैमरे का कोई चार्ज नहीं लगता ?"
"सर , अंदर फोटो लेना मना है। इसलिए ही..."
हम्म्म... इब बात आई पकड़ में कि कैमरे का टिकट क्यों नहीं है। फिर टिकट को अच्छे से पढ़ा तो उस पर भी बढ़े-बढ़े अक्षरों में लिख रखा है "Photography Is Strictly Prohibited Inside"


अंदर हमारे साथ एक गाईड जायेगा जो वहां के बारे में हमको बताएगा। और यहाँ अंदर घूमने  की एक समय सीमा भी है। अंदर मात्र 30 मिनट ही मिलते है। और ये 30 मिनट हमारी मर्जी से नहीं मिलते। टिकट लेते समय उसी पर लिखा रहता है कि आपका समय कितने बजे से शुरू होगा। जैसे हमारे टिकट पर समय लिखा था दोपहर के 12:31 बजे। यानी हमारा अंदर घूमने का समय 12:31 पर शुरू होगा और 01:01 यानी ठीक आधे घंटे तक मान्य रहेगा। 01:01बजे के बाद हम अंदर नहीं रह सकते। हां इसके बाहर जरूर घूम सकते है। 



समय अभी 12 का हुआ था इसलिए हम  सामने बने पार्क में के पास घूमने लगे। संस्थान के ठीक सामने पक्का रास्ता बनाने के लिए रोड़ी (बजरी) पड़ी थी और रास्ते के दूसरी तरफ घास का छोटा सा पार्क जिसमे घूमना मना है। संस्थान के बायीं ओर से इसके पीछे की तरफ रास्ता जाता है और पीछे भी सीढ़ी नुमा छोटे-छोटे पार्क बने हुए है जो बहुत ही खूबसूरत लग रहे थे। कुछ फोटो संस्थान के सामने से लिए कुछ पीछे जाकर। पीछे की जगह मुझे ज्यादा अच्छी लगी। इस समय यहाँ गिनती के बस 30-40 हम जैसे मानस थे। 


जल्द ही 12:30 बज गए और हम अंदर चले गए। अंदर रास्ते से एक कमरें में प्रवेश किया। इस कमरे में अलग-अलग समय के फोटो लगे हुए थे। कोई इंदिरा गाँधी का कोई महात्मा गाँधी का तो कोई जवाहर लाल नेहरू का। और उन फोटो के नीचे इससे संबंधित जानकारी लिखी हुई थी। गाइड ने कमरे का दूसरा दरवाजा खोल दिया जो दूसरे कमरे को सीधे इस कमरे से जोड़ता है। उस कमरे में भी इसी तरह के अलग-अलग गाँधी परिवार और अंग्रेजो के फोटो थे और एक दो पुरानी कुर्सी। इन सब में कोई ज्यादा मजा नहीं आ रहा था। सब लोग बहुत ही शांत थे। और हम नहीं वहां किसी को भी अब तक अच्छा नहीं लग रहा था। सभी लोग उस गाइड की तरफ देख रहे थे कि वो दूसरा गेट खोले और वो लोग फटाक से तीसरे कमरें में जा पहुँचे। गाइड ने सभी के मन की पूरी की और हमे तीसरे कमरे में ले गया। इसमें बीच में एक बड़े आकार का गोल डाइनिंग टेबल थी और उसके चारो तरफ कुर्सियां। उस गाइड ने बताया कि इस संस्थान में सबसे पहले भारतीय जो आये थे वो थे पंडित जवाहर लाल नेहरू जी। उन्हें अंग्रेजों ने भोज पर बुलया था और इस तरह इस संस्थान में प्रवेश करने वाले पहले भारतीय पंडित जवाहर लाल नेहरू जी बन गए। शिमला में सबसे पहले बिजली इसी संस्थान में आयी थी। उसके काफी साल बाद पूरे शिमला को बिजली मिली। तीसरे कमरे से निकल सभी एक खुले में आ गए। जिसे देसी भाषा में हम बरामदा (लॉन) कहते है। बरामदे से सटा एक जीवित पुस्तकालय है। जहाँ 2 जिन्दा मानस हिलते-ढुलते नज़र आये।

इस संस्थान का अंदरूनी हिस्सा पूरा लकड़ी का बना हुआ है। गाइड ने बताया कि ये लकड़ी लगभग 128 साल से ऐसी ही है। यह जानकर मुझे भी आश्चर्य हुआ कि उसका फर्श, दीवार और छत जो सब लकड़ी की बनी हैऔर आज भी इतना चमक रही है। वो 128 साल पुरानी है, लकड़ी की हालत देख यकीन नहीं हो रहा था। वहां उपस्थित सभी लोग अब दीवारों को छू कर उसकी उम्र को महसूस करना चाह रहे थे। देखने से लग रहा था की कल ही इन सबको यहाँ सजाया गया है। छत का हिस्सा काँच का है। और उसके ठीक ऊपर पानी के पाइप एक छोर से दूसरे छोर तक फैले है। इस सभी पाइप के जोड़ एक किस्म के मोम से चिपकाये हुए है। इसका इस तरह का ढांचा यूं ही नहीं है इसके पीछे एक बहुत बड़ा तर्क है। यह अंदर से पूरा लकड़ी का बना है जिससे आग लगने का भी गुंजाइश ज्यादा है। इसी बात को ध्यान में रखकर इसे बनाया गया है। यदि इसमें आग लग जाती है तो पानी के पाइपों के जोड़ों पर लगा मोम आग की गर्मी से पिघल जायेगा और पाइपों के सभी जोड़ खुल जायेगे जिससे पानी बरसेगा और आग पर काबू पा लिया जायेगा। यह पूरी प्रक्रिया खुद-ब-खुद होगी। है ना बढ़िया लॉजिक !! लॉन में ही एक बड़ा लकड़ी का जीना ऊपर जा रहा था। यह बहुत ही लाजवाब है। ऊपर किसी को नहीं जाने दिया। ऊपर यहाँ पढ़ाई करने वाले छात्र रहते है। इसलिए यही से हम बाहर आ गए। जितना ये अंदर से सुन्दर है उतना ही जानदार ये बाहर से भी है। और हां एक और बात इसे राष्ट्रपति निवास के नाम से भी जाना जाता है। 

अब हम बाहर आ गए। कुछ देर के लिए एक बैंच पर बैठ गए। और फिर संग्रहालय के दर्शन को यहाँ से निकल गए। 














यहाँ से थोड़ी दूरी पर ही है संस्थान 











भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला







सामने दिखाई देता संस्थान का मुख्य द्वार 















संस्थान के मुख्य द्वार 











संस्थान के पीछे का हिस्सा 


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शिमला यात्रा के सभी भाग (आप यहाँ से भी शिमला यात्रा के सभी भाग पढ़ सकते है।) :-
1. अबकी बार शिमला यार - Abki Baar Shimla  yaar
2. लो आखिर आ ही गयी ट्रेन - Lo Aakhir Aa Hi Gayi Train
3. कालका-शिमला टॉय ट्रेन का सफर - Kalka-Shimla Toy Train Ka Safar
4. जाखू मंदिर, शिमला - Jakhu Mandir, Shimla
5.  मैं और हसीन वादियां शिमला की - Main Or Haseen Vadiyan Shimla Ki
6. यात्रा को दूसरा पहलू : शिमला - Yatra Ka Dusra Pahalu: Shimla
7. भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान शिमला - Indian Institute Of Advanced Study Shimla 

8. हिमाचल राज्य संग्रहालय, शिमला - Himachal State Museum, Shimla

6 comments:

  1. very nice...hotel booking ke liye konsi site use karte ho?

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    1. शुक्रिया मित्र......अधिकतर Goibibo ही इस्तेमाल करता हूँ होटल बुकिंग के लिए...

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