Pages

Saturday 28 January 2017

सिटी फारेस्ट-ग़ाज़ियाबाद - City Forest-Ghaziabad

04 दिसम्बर 2016 (दिन- रविवार) 


आज के दिन, घूमने का ना कोई मन था ना कोई पहले से बनाई हुई योजना। मैंने एक हेल्थ इन्सोरेन्स कराया था। जिसके लिए मुझे सुबह पत्नी और बेटे के साथ मेडिकल टेस्ट कराने को जाना था। जिसकी मैंने डॉक्टर से पहले ही अपॉइंटमेंट ले रखी थी। उम्मीद थी कि कम से कम 3 घंटे तो ख़राब हो ही जायेगे और घर से इंदिरापुरम जाना और आना, यह समय अलग से लगेगा। यानी आधा दिन आज इसी काम की भेंट चढ़ने वाला था। इसलिए ही मैंने कहीँ और जाने के बारे में सोचा भी नहीं।

सुबह 8 बजे ही घर से इंद्रापुरम के लिए निकल गए। पहला नंबर होने की वजह से ज्यादा समय नहीं लगा। 11 बजे हम वहाँ से निकल गए। जैसे ही मैं आगे बढ़ा तो मन कही घूमने को कहने लगा। चिड़ियाघर, दिल्ली...... नहीं नहीं, वहाँ नहीं कही ओर चलते है... ऐसा
सोचते-सोचते बाइक चलाता रहा। अचानक फिर खुद से मन ही मन सवाल किया, सिटी फारेस्ट कैसा रहेगा ? हाँ, ये ठीक है। वही चलते है। और बस बाइक मोड़ दी उसी तरफ को। 

 5-5 रुपए की अपनी और 20 रुपए की बाइक की (10 बाइक और 10 हेलमेट ) पर्ची कटवाई। और सिटी फारेस्ट के अंदर चल दिए। यह हिंडन नदी के पास ग़ाज़ियाबाद में स्थित है। यहाँ का ये पहला पिकनिक स्पॉट (जगह ) है जो मुझे अच्छा लगा। इसके अंदर समय बिताने के लिए बहुत सी सुविधा दे रखी है जैसे - साइकिल, जीप सवारी, घोड़े की सवारी, बोटिंग (नाव), इसके अंदर ही बच्चो के लिए अलग से एक एडवेंचर गेम की जगह है। इसी तरह की काफी चीज़े है जो यहाँ कर सकते है। इसके साथ-साथ बच्चो के लिए झूले भी है। लेकिन जो हमने 5 रुपए का टिकट लिया है वह सिर्फ यहाँ अंदर आने का है। यदि हमे नाव, जीप या कुछ और एक्टिविटी (कार्य) करनी है तो उसके लिए अलग से टिकट लेना पड़ेगा। ये टिकेट बाहर वाले काउंटर पर नहीं मिलता। जहाँ भी ये गतिविधि होती है। उन्ही के पास ही उनका टिकट मिल जाता है।


इसमें कुछ काम करना अभी बाकी है जैसे- पग पथ पर ईंटो से पक्का करना। यहाँ अभी बहुत धूल उड़ती है। यदि ये रास्ते पक्के हो जाये तो इस धूल से यहाँ घूमने आये लोगो को छुटकारा मिलेगा। कुल मिलाकर जगह मुझे अच्छी लगी। मेरी हिसाब से ग़ाज़ियाबाद की एकमात्र ऐसी जगह जहाँ आप अपने परिवार के साथ रविवार अच्छे से बिता सकते हो। हमने यहाँ 4 घंटे बिताये। पार्क में घुसते ही 2 तरफ रास्ते जाते है।  एक बायीं ओर जो  भीड़-भाड़ वाली जगह है। क्योकि इस तरफ ही नाव, जीप सवारी, झूले, बच्चो की सभी प्रकार की गतिविधियां मौजूद है। और इसके साथ-साथ कुछ खाने-पीने का का भी मन हो तो उसके लिए कैंटीन भी उपलप्ध है। यहाँ छोले भठूरे, पैटीज़, चाउमीन, ब्रेड पकोड़े, चिप्स, कोल्ड ड्रिंक्स की तरह के बहुत से व्यजंन मिलते है। और दायीं ओर किसी भी प्रकार की कोई गतिविधि नहीं थी। यहाँ सिर्फ पेड़, पौधे, कुछ खाली झोपड़िया जो इस तरह बना रखी है कि देखने में किसी गाँव की बस्ती लगे। ठहरा हुआ पानी और उनमे खिले कमल के फूल और 2-4 गिने चुने लोग ही मिले। और एक कैंटीन भी है जो इस तरफ ज्यादा लोगो के ना आने के कारण वीरान सी लग रही थी। हमने अपना अधिकतर समय दायीं तरफ इन  पेड़-पौधे और शांत वातावरण में बिताया। शांत कोना मुझे जहा भी मिले मैं उससे झट से लपक लेता हूँ। शांत वातावरण मुझे एक अलग ही किस्म का सुखद एहसास करता है। यहाँ हमे बहुत ही कम लोग मिले। जिसकी वजह से यहाँ शोर नाम का कोई राक्षस हमारे आस पास नहीं था। 

तक़रीबन 3 घण्टे बिताने का बाद हम इसके दूसरे वाले हिस्से की तरफ गए। जहाँ पहले हमने 50 रुपए प्रति  (प्रति व्यक्ति) 20 मिनट के हिसाब से नाव चलाई। जैसे साइकिल चलाने के लिए पैडल पर पैरो द्वारा आगे की ओर धक्का लगाना पड़ता है, ठीक उसी तरह इस नाव को चलाने के लिए भी पैडल पर पैरो द्वारा आगे की ओर धक्का लगाना होता है। इसमें दो तरफ पैंडल होते है जिन्हें दो व्यक्तियों द्वारा चलाया जाता है। दोनों सीटो के ठीक बीच में एक हैंडल होता है जो नाव की दिशा बदलने के काम आता है। इस नाव को 10 साल और उससे ऊपर के बच्चे भी आसानी से चला सकते है। नाव का सफर पूरा करते ही हम कैन्टीन में पेट पूजा करने पहुँच गए। आपको एक बात और बताता चलू। इसी 8 नवम्बर 2016 को हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी द्वारा भरष्टाचार ख़त्म करने के उद्देश्य से 500 और 1000 रुपए के नोटों को हमेशा के लिए बंद कर दिया गया। जिससे सभी लोगो के पास रखी नगदी ख़त्म हो गयी। हालांकि मुझे यह कदम बहुत ही अच्छा लगा। खैर इन बातो को छोड़ते है और मुद्दे पर आते है। मेरे पास भी नगदी की कमी थी पर शुक्र है कैन्टीन वाले के पास पेटी एम था। जिसकी वजह से हमे ज्यादा सोचना नहीं पड़ा। मैंने चाउमीन, पैटीज़ ले ली। वही पास रखी कुर्सियों में से अपने हिस्से की 2 कुर्सियां झट से पकड़ ली और फट से अपनी चाउमीन, पैटीज़  ख़त्म कर दी। अब आप सोचोगे कि फट से क्यों ? तो मैं आपको बता दू कि पिछले 3-4 घंटे  घर से बाहर घूम रहे थे तो भूख बहुत तेज लग रही थी। इसलिए फट से ख़त्म कर दिया। 

रेलगाड़ी वाले झूले में बेटे को भी झूलाया। लेकिन वो नाव को नहीं भुला। और जो नाव हम चला रहे थे उस नाव को जब किसी ओर को चलाते देखता तो उसको बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता और तुरन्त उन लोगो की शिकायत मुझसे करता। " डैडी देखो वे मेरी  नाव चला रहे है। मैं अपनी नाव लेके आता हूँ.........  । " उसकी इन बातो को सुनकर और बैचनी को देखकर आस-पास के सभी लोग हँसने लगे। बच्चों की ऐसी ही बाते, हमे अपने बचपन के दिन याद दिला जाती है। जिससे हमारे चहरे पर भी मुस्कान आ जाती है। किसी तरह बेटे का ध्यान नाव से हटाया। जिसके लिए मुझे सर्दी में भी पसीना बहाना पड़ा। शाम के 4 बज गए। और हम भी "यहाँ फिर दोबारा आएंगे " इस नारे के साथ घर चले गए। 

और मात्र 248 रुपए में हमारी रविवार की यह यात्रा पूरी हो गयी।  

चौधरियो की बैठक, हुक्के के साथ, जो हुक्का किसी ने तोड़ दिया। 
पानी के ऊपर दिखाई देती काई। 
एक ओर फोटो चूल्हे पर रोटियां बनाते हुए। 
सुन्दरता बढ़ाने के लिए बनाई गयी झोपड़िया। 
यह इस फूल का वास्तविक रंग है।



इसी जगह हमने नाव चलाई थी। 
























































9 comments:

  1. kabhi moka lagega to city forest jarur jayenge. apne itni sari jankari vo bhi photos ke sath hume di. uske liye shukriya.

    ReplyDelete
  2. बहुत खूब ! धन्यवाद् हमारे साथ शेयर करने के लिए!

    ReplyDelete
    Replies
    1. शुक्रिया पुनीत जी

      Delete
  3. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  4. hello i am Avinash. very good description of city forest by your pics. Great bro.

    ReplyDelete