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Thursday 19 January 2017

यात्रा चम्बा और ऋषिकेश की


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10 अक्टूबर 2016 

धनोल्टी से चम्बा लगभग 30 किलोमीटर दूर है। और अभी 1 घंटे का सफर ओर बाकी था। पहाड़ो पर सिर्फ 25-30 तक की रफ़्तार से ही आप वाहन चला सकते है। क्योकि थोड़ी-थोड़ी दूरी पर घुमावदार मोड़ आते रहते है जो वाहन की रफ़्तार पर ब्रेक लगाने को मजबूर कर देते है। और मोड़ पर मुड़ने पर जैसे ही दोबारा रेस देते है, इतने में अगला मोड़ आ जाता है। इसलिए यहाँ पर किसी भी वाहन की औसत स्पीड 25-30 किलोमीटर प्रति घंटा ही रहती है। इस बीच भी हमने कई जगह बाइक रोकी। अभी सूरज ढलने में कुछ समय था लेकिन तापमान में थोड़ी गिरावट जरूर महसूस हो रही थी। और हवा दिन के मुकाबले ठण्डी होने लगी। इस बार हमने ज्यादा देर नहीं की और समय से ही चम्बा पहुँच गए।
चम्बा एक क़स्बा है और यहाँ काफी चहल पहल रहती है। यहाँ से दाएं की ओर रास्ता नरेंद्र नगर होते हुए ऋषिकेश आकर मिलता है और सीधा रास्ता टिहरी झील की तरफ जाता है। अभी अँधेरा होने में कुछ समय बाकी था इसलिए हम सभी को लगा की इतने अँधेरा होगा इतने हम टिहरी झील देखकर वापस लोट सकते है या आज रात टिहरी झील के पास ही रुकेंगे। चम्बा से टिहरी झील केवल 20 किलोमीटर दूर है। हम चम्बा में रुके बिना आगे झील की ओर निकल गए। चम्बा से टिहरी झील की ओर चलने पर सारा रास्ता ढलान का है इसलिए हमे वहाँ पहुँचने में ज्यादा समय नहीं लगा। लेकिन तब तक हल्का-हल्का अँधेरा हो गया था। यह बहुत ही बड़ी और शानदार झील है। इसके किनारे पर कुछ टेंट से बनी दुकाने भी है। जहाँ आप बैठकर खाते-पीते, सुकून से भरे पलो को अपनी ज़िन्दगी का हिस्सा बना सकते है। और एक बात मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि यहाँ बिताये समय को आप कभी नहीं भुला पाएंगे। यहाँ का अनुभव मेरे लिए भी बहुत खास रहा। इतनी अच्छी जगह पर हम रात होने की वजह से ज्यादा देर नहीं रुक पाए और जल्द ही वहाँ से लौटना पड़ा। मुझे एक और चिंता खाये जा रही थी कि अब रात में मैं बाइक कैसे चलाऊंगा। वैसे तो मैं बाइक पिछले 10 सालो से चला रहा हूँ। लेकिन पहाड़ो पर अंधरे में बाइक चलाने का मेरे पास कोई अनुभव नहीं है। मेरे साथ-साथ राजू भी इस बात को लेकर थोड़ा परेशान दिखाई दे रहा था। और उसकी इच्छा थी कि आज रात हम यही कमरा ले के आराम करे। हमे कल सुबह ऋषिकेश होते हुए घर निकलना है तो इस हिसाब से हमे कल पहले ही बहुत बाइक चलानी है। ऊपर से इसमें ये टिहरी झील से चम्बा तक की दूरी और जुड़ गयी तो कल को हमे ही परेशानी होगी। जावेद और आशीष पहले से ही मेरे पक्ष में थे। जिसका मुझे फायदा मिला। हालांकि मेरे और राजू के बीच थोड़ी नोक-झोक जरूर हुई। लेकिन जल्द ही राजू को हमारी बात माननी पड़ी। और इस गरमा गरमी के चक्कर में मैं यहाँ के फोटो लेना भूल गया। जिसके लिए मैंने राजू को घर आने के बाद भी कई दिनों तक सुनाया कि तेरी बहस की वजह से मैं फोटो लेना भूल गया। पिछले कई दिनों से पहाड़ो पर बाइक चलाने का फायदा अब दिखने लगा था और मैंने 20 किलोमीटर की चढाई वाला रास्ता मात्र 15 मिनट में पूरा कर दिया। मेरे लिए ये किसी अचीवमेंट से कम नहीं था। चम्बा पहुँचकर सबसे पहले काम था किसी होटल में रूम लेने का। यहाँ कमरे का प्रबन्ध करने में हमे काफी समय लग गया। यहाँ के होटलो की हालात देखकर पता लग रहा था कि यहाँ कोई पर्यटक नहीं रुकते। सिर्फ हमारे जैसे फसे हुए ही यहाँ रात को ठहरते है। बहुत ही गिने चुने और खस्ता हाल होटल इसका सुबूत खुद बया करते है। कैसे तैसे कमरा लिया उसमे भी बाइक रात को बाहर रोड पर ही खड़ी करनी पड़ी। होटल वाले के पास कोई जगह ही नहीं थी पार्किंग के लिए। और यह हाल वहाँ स्थित लगभग सभी होटलो का था। होटल वाले के कहने पर बाइक रोड पर खड़ी तो कर दी, पर मैंने उसको बोल भी दिया कि यदि हमारी बाइक रात को चोरी हो गयी तो उसका हर्जाना तुम्हे भरना होगा। वो बोला, बेफिक्र रहिये सहाब बाइक यहाँ से कही नहीं जाएगी। हमे बाइको की चिंता तो हो रही थी पर इस हालात से निपटने का हमारे पास दूसरा कोई रास्ता नहीं था। इसलिए उसकी कही बात को ही मानना पड़ा। कमरे में बैग रखकर हम खाना खाने होटल से बाहर आ गए। जैसे हालात यहाँ होटलो के वैसे ही खाने के लिए भी झेलने पड़े। जिस भी जगह जाते वही नॉन वेज खाना मिलता।  वैसे इन पर शाकाहारी खाना भी था। लेकिन हम सोच रहे थे की कोई शुद्ध शाकाहारी भोजनालय ही मिल जाये। पर ऐसा नहीं हुआ और हमे ऐसे ही एक होटल पर खाना, खाना पड़ा। समय 9 का हो गया था। यहाँ से हम अपने कमरे में गये और पैर पसार (सो गए) दिए।

11 अक्टूबर 2016 

अगले दिन सुबह उठे और कमरे से बाहर निकलकर मौसम का जायजा लिया। सर्दी थी और इसी बीच मेरी नज़र अपने ठीक सामने दूर दिखते हिमालय की चोटियों पर पड़ी और मेरे चहरे पर मुस्कान लौट आयी। हालांकि उस चोटी का मुझे नाम तो पता नहीं चल पाया पर वह बहुत शानदार लग रही थी। जो पूरी तरह बर्फ से लिपटी हुई थी। सबको उठाने का और जल्द से जल्द निकलने का जिम्मा पूरी यात्रा में मेरा ही रहा। मैंने सबको उठाया और लेट हो गई ऐसा कह-कह कर सब पर जल्दी तैयार होने का दवाब बनाया। तकरीबन 8 बजे तक सभी तैयार हो गए। मैं और राजू बाइक साफ करने के लिए पहले होटल से बाहर आ गए और उन दोनों को बैग लेके आने को बोल दिया। वाहनों के चलने से पूरी रात धूल बहुत ज्यादा उडी जिससे बाइक पर बहुत ज्यादा धूल जम गयी और इसे साफ़ करने में ही हमारे 10 मिनट लग गए। एक बात आपको बता दू कि आशीष को सुबह उठते ही भूख लगने लगती है। जिससे हम तीनो ही परेशान थे। अब मैंने बोला कि यहाँ से चलते है और 5 किलोमीटर आगे जाकर किसी ढाबे पर नाश्ता कर लेंगे। वहाँ तो सब मेरी बात से सहमत थे पर बाइक पर बैठते ही आशीष को भूख वाला कीड़ा काठने लगा। मुझे पता था कुछ ऐसा ही होने वाला है। इसलिए मैंने पहले ही अपनी बाइक राजू की बाइक से आगे निकाल ली। राजू के पीछे आशीष बैठा था। और जहाँ कही भी आशीष को ढाबा दिखाई देता वही से चिल्लाकर वो हमे बाइक रोकने को बोलता। मुझे पता चल जाता था पर मैं बाइक नहीं रोकता था। आशीष परेशान हो रहा था और हम तीनो उसे देखकर मजे ले रहे थे। जल्द ही वो भी समझ गया कि उसके साथ क्या हो रहा है। हमने उसको ज्यादा परेशान नहीं किया और एक ठीक से ढाबे पर बाइक रोक ली। प्याज के दो-दो पराठे चाय के साथ लिए और फिर से चल दिए। यहाँ का रास्ता बहुत ही मजेदार था ना किसी तरह का ट्रैफिक ना किसी तरह का शोर। अभी तक तो हम धुप में चल रहे थे। हलाकि बादल जरूर थे पर बीच-बीच में धूप नसीब होती रही। अब यहाँ से थोड़ा आगे चलने पर हमारे और सूरज के बीच आवारा पहाड़ो के अनगिनत समूह आकर खड़े हो गया। जिनकी दादागिरी में कोई कमी नहीं थी। हमे बुरा जरूर लग रहा था कि उन्होंने हमारे रास्ते पर छाया की एक बड़ी सी चादर बिछा दी। लेकिन उनके सामने, हमारी कहा चलने वाली थी। एक अहसाय प्राणी की तरह, हम बस उन्हें देखते रह गए। और कुछ ही देर में हमारा परचिय फिर से बहुत ही सुन्दर-सुन्दर पहाड़ो से होने लगा। जितना इन पहाड़ो की खूबसूरती को देखकर मैं मन ही मन हिचकोले ले रहा था, उतना ही यहाँ के रास्तो ने मुझे हैरान कर रखा था । इतने घुमावदार रास्ते, जिसके एक तरफ पहाड़ो की ऊँची-ऊँची चट्टानें दिल खोलकर हमारा स्वागत कर रही थी तो दूसरी तरफ उतनी ही गहरी और खतरनाक खाई, यहाँ अपने मौजूद  होने का अहसास दिला रही थी। कुछ देर बाद बदलो ने भी हमारे इद्र-ग्रिद नाचना शुरू कर दिया। इन पहाड़ो के तीखे और घुमावदार मोड़ होने की वजह से इन्हें नागीन पहाड़ी के नाम से भी जाना जाता है। 


कुछ ही घंटो में हम 65 किलोमीटर का रास्ता तय करके ऋषिकेश पहुँच गए। यहाँ ऋषिकेश में बहुत गर्मी थी। हम 3 दिनों से ठण्डे वातावरण में घूम रहे थे और अचानक इतनी गर्मी में आ गए। इसलिए ये गर्मी हमे बिल्कुल भी रास नहीं आ रही थी। और मन कर रहा था कि फिर से ऊपर पहाड़ो में ही चले जाये। "यहाँ कितनी गर्मी है यार" कहते-कहते हम लक्ष्मण झूले की पास पहुँच गए। बिना देर किये कपडे निकाले और पानी में डुबकी लगा दी। यहाँ के तापमान के हिसाब से पानी बहुत ही ठण्डा था। इससे हम सभी को बहुत ही राहत मिली। कभी पानी में डुबकी लगाते और जब ठण्डे पानी की वजह से ठण्ड लगने लगती तब पानी से बहार आकर धुप सेक लेते और जब धुप में गर्मी लगती तो फिर से पानी के अंदर पहुँच जाते। हम यह सिलसिला 1 घंटे तक दोहराते रहे। इसी बीच यहाँ मेरी मुलाकात एक शख्स से हुई जो अकेले ही फ्रांस से इंडिया घूमने आये हुए थे। उनसे कुछ देर बात करने से पता चला कि वे पिछले 6 महीने से भारत में है और अभी केरल की तरफ से घूमकर आ रहे है और वह दूसरी बार हमारे देश में आये है। जब पहली बार वह यहाँ आये थे, तो उन्हें सिर्फ अपने देश (फ्रांस) की भाषा ही आती थी। और उस समय उन्हें भारत में बातचीत करने में तकलीफ होती थी क्योकि भारत के अधिकांश व्यक्ति हिंदी और अंग्रेजी जानते है। वैसे हमारे देश में अनेको भाषा बोली और समझी जाती है। लेकिन इन दो भाषा का प्रयोग ज्यादा होता है। इसलिए दोबारा यहाँ आने के लिए उन्होंने अंग्रेजी सीखी। यह जानकर मुझे बहुत अच्छा लगा कि एक दूसरे देश के इंसान को हमारे देख से कितना प्रेम है और सिर्फ यहाँ दोबारा आने के लिए उन्होंने अंग्रेजी सीखी। हालांकि यदि वे हिंदी सीखते तो हमे ओर ज्यादा ख़ुशी होती। लेकिन उनका भारत के प्रति प्यार देखकर मुझे बहुत अच्छा लगा। वे भारत के संस्कृति में रंगे हुए थे। इस बात का सुबूत उनके हाथ ने थामी एक बीड़ी दे रही थी। उन्होंने हमे भी बीड़ी पीने का ऑफर दिया। पर चारो में से कोई भी बीड़ी नहीं पिता है इसलिए हमने सहजता से "नो थैंक्स" बोलकर बीड़ी लेने से मना कर दिया और उन्हें अलविदा कहकर घर की ओर रवाना हो गए। ऋषिकेश से हरिद्वार वाले रस्ते पर कुछ देर का जाम मिला। लेकिन इसे पार करने के बाद हमारी बाइक के पहिए कही नहीं रुके। और रात 08:30 बजे हम सब अपने-अपने घर पहुँच गए। 











जहाँ हमने नास्ता किया था उस होटल की खिड़की से बाहर का नज़ारा 






जावेद मस्ती करते-करते सड़क पर ही लेट गया। 

राम झूला और नीचे बहती गंगा जी (ऋषिकेश )











7 comments:

  1. bahut hi achi or safal yarta rahi apki. or usse bhi acha apne hum sabhi ke sath ise share kiya hai.

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  2. Apke lekh padne bhar se hi meri yatra ho gayi

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  3. Ye pad kr lga ki maine ek baar fir se tmhare sath tour kar liya

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